Nuclear Test Explosions: भूकंप और परमाणु परीक्षणों को लेकर एक रिसर्च सामने आई है, जिसमें बताया गया है कि बार-बार धरती डोलने का मतलब ये नहीं कि भूकंप आया हो, असल में ये सीक्रेट न्यूक्लियर टेस्ट भी हो सकते हैं. लॉस अल्मोस नेशनल लेबोरेटरी के भूकंप वैज्ञानिकों ये रिसर्च की है.
अमेरिका के सिस्मोलॉजिकल सोसायटी के बुलेटिन में पब्लिश एक नए रिव्यू आर्टिकल के मुताबिक, यह संभव है कि भूकंप न आया हो और न्यूक्लियर टेस्ट किया गया हो. रिसर्च बताती है कि भूकंप और चुपके से किए गए अंडरग्राउंड न्यूक्लियर टेस्ट में अंतर कर पाना बहुत मुश्किल है. नेचुरल भूकंप के संकेतों से संभावित विस्फोट को छिपाना दुनिया भर में परमाणु परीक्षण निगरानी के लिए जिम्मेदार वैज्ञानिकों के समुदाय के लिए चिंता का विषय है.
भूकंप और न्यूक्लियर टेस्ट में अतंर कर पाना मुश्किल क्यों?
उत्तर कोरिया ने पिछले 20 सालों में छह परमाणु परीक्षण किए हैं, क्षेत्रीय भूकंपीय उपकरणों में वृद्धि से पता चलता है कि टेस्टिंग एरिया के आसपास में कम तीव्रता की भूकंपीय गतिविधि उससे कहीं अधिक रही है, जितना हमने शुरू में अनुमान लगाया था. टेस्टिंग एरिया के आसपास छोटे भूकंप बहुत आते हैं. ऐसे में विस्फोट के संकेतों और भूकंप के झटकों को पहचानना मुश्किल हो जाता है.
शोधकर्ताओं ने यह भी पाया कि भूकंप के झटकों या अन्य बार-बार होने वाली भूकंपीय घटनाओं से उत्पन्न प्राकृतिक संकेतों को ओवरलैपिंग तरंगों से छिपाया जा सकता है. विस्फोट मास्किंग का टेस्ट करना कठिन रहा है, क्योंकि जांच के लिए विस्फोट बहुत कम हैं और बहुत कम डेटा सेट हैं जिनमें विस्फोट और प्राकृतिक भूकंपीय संकेत दोनों शामिल हों.
पुरानी धारणा को मुंह दिखाती ये रिसर्च
अब तक माना जाता था कि भूकंप के संकेतों से विस्फोटों को छुपाया नहीं जा सकता. वहीं, नई स्टडी इसके उलट इस धारणा को गलत साबित करती है. वैज्ञानिकों का मानना है कि भूकंप और न्यूक्लियर टेस्ट के झटकों के आपस में मिलने से इनको अलग करना मुश्किल हो जाता है. इतना ही नहीं लेटेस्ट टेक्नोलॉजी भी इसके आगे फेल हो जाती है क्योंकि दोनों ही झटके एक जैसे होते हैं.
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