Supreme Court: सुप्रीम कोर्ट ने एक अहम फैसले में साफ किया कि भारत में शरिया कोर्ट, काजी कोर्ट, दारुल कजा या इसी तरह के किसी भी संस्थान की कोई कानूनी मान्यता नहीं है. कोर्ट ने कहा कि इस तरह के किसी भी अदालतों की ओर से दिया गया कोई भी निर्देश लागू नहीं होता और न ही इसे मानने के लिए किसी को बाध्य किया जा सकता है.
‘शरिया अदालतों और फतवों को मान्यता नहीं’
जस्टिस सुधांशु धूलिया और जस्टिस अहसनुद्दीन अमानुल्लाह की बेंच ने 4 फरवरी को गुजारा भत्ता मांगने वाली एक महिला की अपील पर सुनवाई करते हुए 2014 के एक फैसले का हवाला दिया, जिसमें कहा गया था कि शरीयत अदालतों और फतवों को कानूनी मान्यता नहीं है. इस मामले में एक महिला शहजाहन ने इलाहाबाद हाई कोर्ट के उस फैसले को चुनौती दी थी, जिसमें फैमिली कोर्ट के आदेश को बरकरार रखा गया था.
लाइव लॉ की रिपोर्ट के मुताबिक फैमिली कोर्ट ने शहजाहन को गुजारा भत्ता देने से इनकार कर दिया था, क्योंकि उन्होंने एक काजी कोर्ट में एग्रीमेंट लेटर देकर यह माना था कि वैवाहिक विवाद उन्हीं के कारण हुआ था. पारिवारिक कोर्ट के तर्कों को खारिज करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि काजी कोर्ट या शरिया अदालत का कोई कानूनी आधार नहीं है. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि इस तरह के किसी भी अदालतों के फैसले को जबरदस्ती लागू नहीं किया जा सकता है.
भरण-पोषण की मांग को लेकर पत्नी पहुंची फैमिली कोर्ट
अपीलकर्ता शहजाहन का विवाह साल 2002 में इस्लामी रीति-रिवाजों के अनुसार हुआ था. यह दोनों की दूसरी शादी थी. 2005 में भोपाल में शहजाहन के खिलाफ काजी की अदालत में तलाक का मुकदमा दायर किया गया. हालांकि फिर दोनों पक्षों के बीच समझौता हो गया. इसके बाद साल 2008 में शहजाहन के पति ने दारुल कजा की अदालत में तलाक के लिए एक और मामला दायर किया. उसी साल पत्नी ने धारा 125 सीआरपीसी के तहत भरण-पोषण की मांग करते हुए फैमिली कोर्ट का रुख किया था.
सुप्रीम कोर्ट ने पत्नी को भरण-पोषण देने को कहा
साल 2009 में दारुल कजा की अदालत ने तलाक को मंजूरी दे दी और तलाकनामा जारी हुआ, लेकिन फैमिली कोर्ट ने शहजाहन की भरण-पोषण की मांग को खारिज कर दिया. कोर्ट ने कहा कि शहजाहन के पति ने उन्हें नहीं छोड़ा, बल्कि शहजाहन के स्वभाव की वजह से विवाद हुआ और वह खुद घर छोड़कर चली गईं. सुप्रीम कोर्ट ने फैमिली कोर्ट के इस तर्क को गलत ठहराया. सुप्रीम कोर्ट ने पति को निर्देश दिया कि वह फैमिल कोर्ट में भरण-पोषण याचिका दायर करने की तारीख से अपीलकर्ता को प्रति माह 4,000 रुपये भरण-पोषण के रूप में भुगतान करे.