Strait of Hormuz Importance: मिडिल ईस्ट में तनाव के बीच अब हॉर्मुन जलडमरुमध्य को बंद करने के लिए ईरान की संसद से मंजूरी मिल गई है. इसके बंद होने से क्रूड ऑयल की सप्लाई चेन प्रभावित होने की आशंका जताई जा रही है. हालांकि, पेट्रोलियम मंत्री हरदीप सिंह पूरी ने जरूर कहा कि क्रूड ऑयल की कोई कमी नहीं है और सरकार की इस पर करीबी नजर है. लेकिन, ईरान के परमाणु प्रतिष्ठानों पर अमेरिकी हवाई हमले के बावजूद अगर तेल के परिवहन वाले समुद्री रास्ते जलडमरुमध्य को ईरान हॉर्मुन बंद कर भी देता है तो इससे भारत को बहुत ज्यादा ज्यादा फर्क नहीं पड़ने वाला है.
स्ट्रेट ऑफ हॉर्मुन बंद होने का नहीं होगा असर
उद्योग जगत के जानकारों की मानें तो अगर हॉर्मुन जलडमरुमध्य को बंद किया जाता है तो भारत के पास तेल आयात करने के कई विकल्प मौजूद रहेगा. रूस से लेकर अमेरिका और ब्राजील तक के देशों से भारत अपनी जरूरतों का तेल वैकल्पिक स्त्रोत के तौर पर अपनाकर आयात कर सकता है.
जैसे ही ईरान और इजरायल के बीच तनाव बढ़ा ईरानी संसद ने हॉर्मुन जलडमरुमध्य को बंद करने की मंजूरी दे दी है. यहां से दुनिया के कुल तेल और गैस आपूर्ति का करीब 20 फीसदी तेल परिवहन इसी जलमार्ग से होता है. भारत अपने तेल और गैस की जरूरतों का करीब 40 प्रतिशत हिस्सा इसी हिस्से से आयात करता है. ये हॉर्मुज़ जलडमरूमध्य उत्तर में ईरान और दक्षिण में ओमान और संयुक्त अरब अमीरात के बीच स्थित है. प्रमुख तेल उत्पादक देश सऊदी अरब, ईरान, इराक, कुवैत और यूएई से तेल परिवहन का ये एक प्रमुख हिस्सा है.
भारत 90% तेल करता है आयात पर निर्भर
भारत अपनी जरूरतों का करीब 90 फीसदी हिस्सा आयात करता है, जिसमें से करीब 40 प्रतिशत हिस्सा मि़डिल ईस्ट के देशों से इसी हॉर्मुन जलडमरुमध्य के रास्ते से होकर आता है. भारत करीब 51 लाख बैरल तेल का रोजना आयात करता है, जिसे रिफाइनरी में कन्वर्ट कर पेट्रोल-डीजल तैयार किया जाता है.
लेकिन, इस रास्ते के बंद होने की सूरत में भारत में तेल की कीमतों को बढ़ना तय है. लेकिन भारत में इसका कुछ खास असर नहीं होगा. दरअसल, इसके पीछे वजह ये है कि जैसे ही मिडिल ईस्ट में तनाव बढ़ा भारत ने रूस से जून में तेल की खरीद बढ़ा दी. मिडिल ईस्ट के सप्लायर देश सऊदी अरब और ईराक जैसे देशों से तेल के आयात को बढ़ा दिया. रूस से आयातित तेल हॉर्मुन जलडमरुमध्य से अलग सुएज कैनल से होकर आता है. इसके अलावा, अमेरिका, पश्चिम अफ्रीका, लैटिन अमेरिका जैसे देश भी विकल्प के तौर पर तेल के बैकअप देशों के लिए भारत के पास ऑप्शन में है.
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