‘अपनी हदों से होंगे पार तो रोकेगा सुप्रीम कोर्ट’, उपराष्ट्रपति धनखड़ के बयान पर बोले राशिद अल्व

‘अपनी हदों से होंगे पार तो रोकेगा सुप्रीम कोर्ट’, उपराष्ट्रपति धनखड़ के बयान पर बोले राशिद अल्व


Vice President Jagdeep Dhankhar On SC: सुप्रीम कोर्ट के एक हालिया आदेश पर उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ की तीखी प्रतिक्रिया के बाद देश की राजनीति एक बार फिर संविधान और संस्थाओं के अधिकार क्षेत्र को लेकर गर्मा गई है. जगदीप धनखड़ ने कहा, “भारत में ऐसा लोकतंत्र नहीं होना चाहिए, जहां जज ‘सुपर संसद’ की तरह कार्य करें और राष्ट्रपति को निर्देशित किया जाए.” इस बयान के जवाब में कांग्रेस नेता राशिद अल्वी ने प्रतिक्रिया देते हुए कहा, “अगर राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति या प्रधानमंत्री अपनी सीमाएं लांघते हैं तो सुप्रीम कोर्ट उन्हें रोक सकता है.”

उपराष्ट्रपति का बयान
राज्यसभा के प्रशिक्षु कार्यक्रम में बोलते हुए उपराष्ट्रपति ने हाल ही में सुप्रीम कोर्ट की ओर से दिए गए एक फैसले का जिक्र किया, जिसमें कहा गया था कि राष्ट्रपति को विधेयकों पर तीन महीने के भीतर निर्णय लेना होगा. धनखड़ ने सवाल उठाया कि “क्या अब राष्ट्रपति को निर्देश दिए जाएंगे कि वह कब क्या फैसला लें? क्या अब जज कानून बनाएंगे और कार्यपालिका के कार्य भी करेंगे?” उपराष्ट्रपति ने कहा कि हमने कभी नहीं सोचा था कि देश में ऐसी स्थिति आएगी, जहां न्यायपालिका कार्यपालिका और विधायिका. तीनों की भूमिका निभाने लगेगी.

कांग्रेस का पलटवार
कांग्रेस नेता राशिद अल्वी ने उपराष्ट्रपति के इस बयान को लेकर नाराजगी जताई. उन्होंने कहा, “हम उपराष्ट्रपति का सम्मान करते हैं, लेकिन संविधान में सुप्रीम कोर्ट को यह अधिकार है कि अगर कोई भी संवैधानिक पदाधिकारी अपनी सीमाएं पार करता है तो उसे रोका जाए.” उन्होंने आगे कहा कि अगर किसी भी व्यक्ति या संस्था का आचरण संविधान के खिलाफ होगा, तो जनता और विपक्ष को सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाने का अधिकार है.

संवैधानिक अधिकार और जिम्मेदारियां
भारतीय संविधान में तीनों संस्थाओं – कार्यपालिका, विधायिका और न्यायपालिका के अलग-अलग अधिकार और ज़िम्मेदारियां तय हैं. राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति, संविधान के संरक्षक माने जाते हैं, लेकिन वे किसी विधेयक पर फैसला लेने से मना नहीं कर सकते यदि वह संसद की ओर से पारित हो चुका हो. वहीं सुप्रीम कोर्ट, संविधान की सर्वोच्च व्याख्याकार है और उसे यह अधिकार है कि वह कार्यपालिका और विधायिका के कार्यों की न्यायिक समीक्षा कर सके. इस मामले में सुप्रीम कोर्ट का आदेश यह था कि राष्ट्रपति को विधेयक पर तीन महीने के भीतर निर्णय लेना होगा, ताकि देश की विधायी प्रक्रिया में अनिश्चितता न बनी रहे.

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