आपराधिक मामलों में लगने वाली जुर्माने की राशि बढ़ाने की मांग सुनने से सुप्रीम कोर्ट ने मना कर दिया है. चीफ जस्टिस भूषण रामकृष्ण गवई की अध्यक्षता वाली बेंच ने कहा कि वह ऐसा आदेश नहीं दे सकती. याचिकाकर्ता का कहना था कि इस समय लगाया जा रहा जुर्माना उस उद्देश्य को पूरा नहीं करता जिसके लिए जुर्माने का प्रावधान कानून में रखा गया था. कोर्ट ने याचिकाकर्ता से कहा कि वह कानून में बदलाव के लिए सरकार को ज्ञापन दें.
याचिकाकर्ता संजय कुलश्रेष्ठ ने कहा था कि समय के साथ रुपए का अवमूल्यन हुआ है, लेकिन कई दशक से जुर्माना राशि की समीक्षा नहीं की गई है. 100 या 500 रुपए जैसा जुर्माना बहुत मामूली है. यह अपराध की गंभीरता के मुताबिक नहीं है. जिस उद्देश्य के लिए जुर्माने की व्यवस्था रखी गई थी, मामूली जुर्माना उसे पूरा नहीं कर रहा.
याचिका में क्या कहा गया:-
- अब जुर्माना अपराध से दूर रहने को प्रेरित नहीं करता. गलत काम करते समय अपराधी को कोई डर नहीं होता
- जुर्माना राशि पीड़ित को मुआवजा देने के लिए भी अपर्याप्त है. एक मामले में 6 साल की बच्ची के बलात्कारी पर मुआवजे के लिए सिर्फ 5000 का अतिरिक्त जुर्माना लगा
- दंड के तौर पर भी जुर्माना नाकाफी है. कोई 1500 रुपए देकर 1 महीने की जेल से बच सकता है या 3000 रुपये देकर 6 महीने की कठोर जेल से बच सकता है. जहां जेल के बदले जुर्माने का विकल्प है, वहां जुर्माना राशि बढ़ाने की आवश्यकता है
याचिकाकर्ता ने कहा था कि मोटर व्हीकल एक्ट में कई बार संशोधन हुए हैं और जुर्माना बढ़ाया गया है. शराब पीकर गाड़ी चलाने के लिए 10,000 रुपए का जुर्माना है. प्रदूषण सर्टिफिकेट न रखने का भी भारी जुर्माना है. कई ट्रैफिक नियम एक साथ तोड़ने पर 50,000 रुपए तक जुर्माना है. यह कानून का उल्लंघन करने से लोगों को रोकता है.
याचिका में कहा गया था कि अगर नीति-निर्माता कुछ मामलों में हल्का जुर्माना रखना चाहते हैं, तो इसमें सामुदायिक सेवा जोड़ सकते हैं. इसके तहत वृक्षारोपण, वृद्धाश्रम में सेवा जैसी बातों को रखा जा सकता है, लेकिन जुर्माना राशि अपराध की गंभीरता के अनुसार ही होनी चाहिए.
याचिकाकर्ता ने मांग की थी कि सुप्रीम कोर्ट निचली अदालतों को निर्देश दे कि वह अपने आदेशों में ऐसा आर्थिक दंड लगाना शुरू करें जो अपराध की मंशा रखने वाले व्यक्ति को इससे रोक सके, लेकिन कोर्ट ने कहा कि अदालतें वही आदेश देती हैं जिसका प्रावधान कानून में है.