देश की सर्वोच्च अदालत सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार (12 फरवरी, 2025) को बंबई उच्च न्यायालय के उस आदेश पर आपत्ति जताई, जिसमें एक महिला के लिए ‘अवैध पत्नी’ और ‘वफादार रखैल’ जैसे शब्दों का इस्तेमाल किया गया था. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि ये उसके मौलिक अधिकारों का उल्लंघन है और ‘महिला विरोधी’ टिप्पणी है.
इस मामले को लेकर न्यायमूर्ति अभय एस ओका, न्यायमूर्ति अहसानुद्दीन अमानुल्लाह और न्यायमूर्ति ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह की पूर्ण पीठ ने बंबई उच्च न्यायालय द्वारा इस्तेमाल की गई ‘आपत्तिजनक भाषा’ पर नाराजगी जताई. पीठ ने कहा,‘दुर्भाग्यवश, बंबई उच्च न्यायालय ने ‘अवैध पत्नी’ जैसे शब्द का इस्तेमाल करने की कोशिश की. हैरानी की बात तो ये है कि उच्च न्यायालय ने 24वें पैराग्राफ में ऐसी पत्नी को ‘वफादार रखैल’ बताया है.’
क्या कहता है हिंदू विवाह अधिनियम
उच्चतम न्यायालय की पीठ ने कहा, ‘जिस महिला का विवाह अमान्य घोषित कर दिया गया था, उसे ‘अवैध पत्नी’ कहना ‘बहुत अनुचित’ था और इससे उसकी गरिमा को ठेस पहुंची है. सुप्रीम कोर्ट हिंदू विवाह अधिनियम, 1955 की धारा 24 और 25 के उपयोग पर परस्पर विरोधी विचारों से संबंधित मामले की सुनवाई कर रही थी. अधिनियम की धारा 24 मुकदमे के लंबित रहने तक भरण-पोषण और कार्यवाही के खर्च से संबंधित है, जबकि धारा 25 में स्थायी गुजारा भत्ता और भरण-पोषण का प्रावधान है.
‘अवैध पत्नी कहना गलत’
सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले पर विचार करते हुए कई पुराने फैसलों की भी चर्चा की. इनमें से एक 2004 में बॉम्बे हाई कोर्ट से आया ‘भाऊसाहेब बनाम लीलाबाई” फैसला है. इस केस में हाई कोर्ट ने मुआवजे का आदेश देने से मना करते हुए दूसरी पत्नी के लिए ‘अवैध पत्नी’ और ‘वफादार रखैल’ जैसे शब्दों का प्रयोग किया था. सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि हाई कोर्ट को ऐसे शब्दों का प्रयोग नहीं करना चाहिए था. जब पति के लिए ‘अवैध पति’ का प्रयोग नहीं किया जाता तो पत्नी के लिए ऐसा कह कर उसके सम्मान को ठेस नहीं पहुंचाई जा सकती.
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