बिहार वोटर लिस्ट सत्यापन (SIR) मामले में चुनाव आयोग को सुप्रीम कोर्ट से बड़ी राहत मिली है. कोर्ट ने SIR पर रोक लगाने से इनकार कर दिया है. मामले की सुनवाई के दौरान कोर्ट में माहौल एक समय पर तीखा हो गया जब याचिकाकर्ता के वकील ने कहा कि चुनाव आयोग अब उस वोटर आईडी को भी मान्यता नहीं दे रहा है, जिसे उसने खुद ही जारी किया था. अब इस मामले में 28 जुलाई को सुनवाई होगी.
आप गली में मत घुसिए, हम हाईवे पर हैं- सुप्रीम कोर्ट
याचिकाकर्ता के वकील ने चुनाव आयोग की पूरी प्रक्रिया को मनमाना और अव्यवहारिक बताया, जिसके बाद जस्टिस सुधांशु धूलिया और जस्टिस जॉयमाल्या बागची की बेंच ने उन्हें बीच में टोका. जस्टिस धुलिया ने कहा, “हम हाईवे पर चल रहे हैं, आप गलियों में मत घुसिए. मुद्दे की बात कीजिए.”
याचिकाकर्ता के वकील की दलीलों को सुनने के बाद जस्टिस जॉयमाल्या बागची ने कहा, “आपकी मुख्य आपत्ति ये है कि चुनाव आयोग आधार कार्ड और वोटर आईडी को पहचान के दस्तावेज के रूप में स्वीकार क्यों नहीं कर रहा है?” सुप्रीम कोर्ट ने चुनाव आयोग को 11 दस्तावेजों में आधार, वोटर आईडी और राशन कार्ड को शामिल करने का सुझाव दिया.
हम फॉर्म लेकर घर-घर जा रहे- चुनाव आयोग
चुनाव आयोग के वकील राकेश द्विवेदी ने कहा, “वोट देने का अधिकार सिर्फ भारतीय नागरिकों के पास है. आधार आवास का प्रमाण हो सकता है इसलिए वोटर लिस्ट में नाम डालते समय उसे मान्य किया गया, लेकिन यह विशेष अभियान है. हमने 11 दस्तावेज मांगे हैं.” जज ने पूछा, “क्या आप कह रहे हैं कि जनवरी 2025 में जारी लिस्ट के सभी नाम नई लिस्ट में होंगे?”
इस पर राकेश द्विवेदी ने कहा, “हम पहले से भरा फॉर्म लेकर घर-घर जा रहे हैं. उन्हें सिर्फ साइन करना है. इस प्रक्रिया में सबकी भागीदारी है. राजनीतिक दलों को भी साइन करवाने का जिम्मा दिया गया है. यह बात कोर्ट को याचिकाकर्ताओं ने नहीं बताई है.
संवैधानिक संस्था को काम करने से नहीं रोक सकते- SC
सुप्रीम कोर्ट ने कहा, “हमारा मानना है कि इस पर विस्तृत सुनवाई की जरूरत है. इस मामले पर अगली सुनवाई 28 जुलाई को होगी और उससे पहले सभी पक्ष जवाब दाखिल करें. इस याचिका में लोकतंत्र से जुड़ा मुद्दा उठाया गया है. हम संवैधानिक संस्था को वह कार्य करने से नहीं रोक सकते, जो उन्हें करना चाहिए.”
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