‘आरोपी के जीवन और स्वतंत्रता के अधिकार की अनदेखी नहीं की जा सकती’, SC की टिप्पणी

‘आरोपी के जीवन और स्वतंत्रता के अधिकार की अनदेखी नहीं की जा सकती’, SC की टिप्पणी


Supreme Court on Article 21: उच्चतम न्यायालय ने बुधवार (12 फरवरी ) को स्पष्ट किया कि संविधान के अनुच्छेद-21 के तहत जीवन और स्वतंत्रता के अधिकार की अनदेखी केवल इसलिए नहीं की जा सकती कि किसी व्यक्ति पर आपराधिक आरोप हैं. इस फैसले के तहत, अदालत ने उत्तर प्रदेश गैंगस्टर अधिनियम के तहत दर्ज तीन व्यक्तियों के खिलाफ मामला खारिज कर दिया.

न्यायमूर्ति सुधांशु धूलिया और न्यायमूर्ति अहसानुद्दीन अमानुल्लाह की पीठ ने कहा कि जिन मामलों में व्यक्तियों के खिलाफ उत्तर प्रदेश गैंगस्टर और असामाजिक गतिविधियां (रोकथाम) अधिनियम, 1986 के तहत मामला दर्ज किया गया, वे मामले साधारण नहीं, बल्कि गंभीर हो सकते हैं.

संविधानिक अधिकारों की सुरक्षा पर जोर
न्यायमूर्ति सुधांशु धूलिया और न्यायमूर्ति अहसानुद्दीन अमानुल्लाह की पीठ ने कहा कि गैंगस्टर और असामाजिक गतिविधियां (रोकथाम) अधिनियम, 1986 के तहत दर्ज मामले गंभीर हो सकते हैं, लेकिन इससे जीवन और स्वतंत्रता के अधिकार की अवहेलना नहीं की जा सकती. अदालत ने यह भी स्पष्ट किया कि कोई भी कठोर और दंडात्मक कानून सख्त व्याख्या की मांग करता है, ताकि संविधान की ओर से प्रदत्त अधिकारों का हनन न हो.

इलाहाबाद हाईकोर्ट के आदेश को किया रद्द
सुप्रीम कोर्ट ने इलाहाबाद उच्च न्यायालय के 17 जनवरी 2024 के आदेश को रद्द कर दिया, जिसमें जय किशन, कुलदीप कटारा और कृष्ण कटारा के खिलाफ प्राथमिकी रद्द करने से इनकार किया गया था.
आरोपियों ने दलील दी थी कि तीन प्राथमिकी एक संपत्ति विवाद से संबंधित थीं और आरोप दीवानी प्रकृति के थे, इसलिए गैंगस्टर अधिनियम के तहत कार्यवाही अनुचित थी. न्यायालय ने आरोपों को आपराधिक की बजाय दीवानी विवाद मानते हुए मामला खारिज कर दिया. यह फैसला संविधान की ओर से प्रदान किए गए मौलिक अधिकारों की रक्षा की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम माना जा रहा है.

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