आर्मेनिया की संसद में बवाल! विपक्षी पार्टी के सांसद पर हुआ हमला, हाथापाई का वीडियो आया सामने

आर्मेनिया की संसद में बवाल! विपक्षी पार्टी के सांसद पर हुआ हमला, हाथापाई का वीडियो आया सामने


Armenia Parliament: आर्मेनिया की संसद में उस समय तनाव चरम पर पहुंच गया, जब विपक्षी सांसद अर्तुर सार्गस्यान ने भाषण के बाद सदन से बाहर जाने की कोशिश की. यह घटनाक्रम एक आम सत्र से अचानक उग्र रूप में बदल गया और देखते ही देखते सांसदों और सुरक्षाकर्मियों के बीच हाथापाई शुरू हो गई. चश्मदीदों के अनुसार सांसद वाहे गालुम्यान ने सार्गस्यान पर पीछे से हमला किया, जिससे सदन में मौजूद अन्य सांसद भी उठ खड़े हुए और स्थिति हिंसक हो गई.

विपक्षी सांसद अर्तुर सार्गस्यान अर्तुर सार्गस्यान पर कई गंभीर आरोप हैं. उनके ऊपर सशस्त्र तख्तापलट की साजिश में संलिप्तता का भी आरोप है. हालांकि उन्होंने इन आरोपों का खंडन किया है. उन्होंने एक भाषण में कहा कि आर्मेनिया एक तानाशाही का गढ़ बन गया है, जहां सब कुछ पहले से निर्धारित है. यह बयान न केवल सरकार की नीतियों पर प्रहार था, बल्कि उन सांसदों पर भी टिप्पणी थी जो लोकतंत्र की प्रक्रिया को केवल एक औपचारिकता मानते हैं. सार्गस्यान की संसदीय छूट रद्द करने पर बहस के दौरान ही यह पूरा हंगामा हुआ और इससे साफ है कि यह सिर्फ एक व्यक्तिगत मामला नहीं बल्कि आर्मेनिया की मौजूदा राजनीतिक संरचना पर सवाल उठाने का प्रयास है.

पशिनयान सरकार और असहमति पर कार्रवाई

प्रधानमंत्री निकोल पशिनयान की सरकार ने हाल के हफ्तों में विपक्ष पर सख्त रुख अपनाया है. उन्होंने न केवल तख्तापलट की साजिश का आरोप लगाया है बल्कि अर्मेनियाई अपोस्टोलिक चर्च के नेतृत्व को भी निशाने पर लिया है, जिसे उन्होंने ईसाई-विरोधी और राष्ट्र-विरोधी करार दिया. संसद में हुई इस घटना ने एक बड़ी प्रक्रिया को जन्म दिया है. अब विपक्षी नेताओं सेयरन ओहानयान और आर्ट्सविक मिनसयान की भी संसदीय छूट रद्द कर दी गई है. हालांकि उन्हें हिरासत में लेने का कोई प्रस्ताव अभी तक पेश नहीं किया गया है, लेकिन उनके खिलाफ आपराधिक कार्यवाही का रास्ता साफ हो गया है.

संसदीय व्यवस्था की असफलता और विपक्ष की रणनीति

जब उपाध्यक्ष रूबेन रुबिनयान संसद को नियंत्रित करने में असमर्थ रहे तो उन्होंने सत्र स्थगित कर दिया. यह फैसला एक ओर जहां शांति स्थापित करने की कोशिश थी, वहीं दूसरी ओर यह भी दिखाता है कि देश की सर्वोच्च विधायी संस्था अब राजनीतिक अस्थिरता का मंच बन चुकी है. विपक्ष अब इस स्थिति को अंतरराष्ट्रीय मंचों तक ले जाने की तैयारी कर रहा है. वे इसे प्रेस स्वतंत्रता, मानवाधिकारों और लोकतांत्रिक मूल्यों पर हमले के रूप में पेश कर सकते हैं. वहीं सत्तारूढ़ दल इसे कानून व्यवस्था की रक्षा के रूप में दर्शा रहा है.

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