बेंगलुरु के करोड़पति उद्यमी और Wingify कंपनी के संस्थापक पारस चोपड़ा ने हाल ही में एक ऐसा बयान दिया है, जिससे भारतीय स्टार्टअप समुदाय में नई बहस छिड़ गई है. पारस ने अपनी नई एआई लैब Lossfunk की टीम को साफ निर्देश दिया है कि वे भारतीय ग्राहकों से बातचीत न करें. यह फैसला उन्होंने उस प्रवृत्ति को देखते हुए लिया है, जिसे अब सोशल मीडिया पर ‘Skip India Movement’ कहा जा रहा है.
क्या है ‘Skip India Movement’?
इस मूवमेंट की शुरुआत एक चर्चित निवेशक वैभव डोमकुंडवर की पोस्ट से हुई. उन्होंने दावा किया कि भारत में टेक और एआई स्टार्टअप्स को ग्राहक बार-बार फ्री में PoC (Proof of Concept) देने के लिए कहते हैं, लेकिन बाद में पेइंग कस्टमर नहीं बनते. उन्होंने लिखा, “अब संस्थापक कह रहे हैं, बहुत हो गया. हम अब भारतीय ग्राहकों को प्रोडक्ट बेचना बंद कर रहे हैं. यूनिकॉर्न कंपनियां भी इन स्टार्टअप्स का मुफ्त में फायदा उठा रही हैं.”
पारस चोपड़ा का कड़ा रुख
हिंदुस्तान टाइम्स पर छपी एक खबर के अनुसार, पारस चोपड़ा ने इस मुद्दे पर अपनी राय रखते हुए कहा, “मैंने Lossfunk की टीम को इंडियन कस्टमर्स से बात करने से मना कर दिया है. भारत एक छोटा टेक मार्केट है और अक्सर संस्थापक इसी में सीमित रह जाते हैं. लेकिन यहां स्केलेबिलिटी की कमी है.” उन्होंने यह भी जोड़ा कि कई बार स्टार्टअप भारतीय बाजार के लिए ऑप्टिमाइज़ करते रहते हैं, लेकिन जब ग्लोबल स्तर पर बढ़ने की बारी आती है तो वे पिछड़ जाते हैं.
भारतीय ग्राहकों को लेकर क्या हैं शिकायतें?
इस मूवमेंट से जुड़े कई अन्य संस्थापकों और निवेशकों ने भी भारतीय ग्राहकों को लेकर नाराज़गी जताई है. उनका कहना है कि ग्राहक बार-बार फ्री ट्रायल या डेमो मांगते हैं. यहां के ग्राहकों में भुगतान की इच्छा और क्षमता बहुत कम होती है. इसके आलावा, बड़े कॉर्पोरेट भी मुफ्त सेवाओं का इस्तेमाल करते हैं. शुरुआती स्टार्टअप्स को ‘फ्री PoC प्रोवाइडर’ बनाकर छोड़ दिया जाता है.
टेक कम्युनिटी में छिड़ी बहस
जहां एक तरफ कुछ लोग इस रुख को व्यावसायिक रूप से सही मान रहे हैं, वहीं कई लोगों का मानना है कि भारत जैसे विशाल और संभावनाओं से भरे बाजार को छोड़ना एक बड़ी गलती हो सकती है. एक यूजर ने लिखा, “ग्लोबल स्टार्टअप बनाने के लिए भारतीय बाजार को नजरअंदाज करना समझदारी नहीं है. यहां से आपको शुरुआती सीख और टेस्टिंग दोनों मिलती है.”
क्या भारत फ्री सर्विस का आदी हो गया है?
यह बहस भारत के तकनीकी उपभोक्ता व्यवहार पर भी सवाल खड़े करती है. क्या भारत सच में “फ्री में सब कुछ पाने” की मानसिकता वाला बाजार है? या फिर स्टार्टअप्स को अपने बिजनेस मॉडल और ग्राहक रणनीति पर दोबारा विचार करने की जरूरत है?
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