Muslim Population In Next 5 Year: प्यू रिसर्च सेंटर के फोरम ऑन रिलीजन एंड पब्लिक लाइफ के नए जनसंख्या अनुमानों के अनुसार अगले 20 वर्षों में दुनिया की मुस्लिम आबादी लगभग 35 फीसदी बढ़ने की उम्मीद है, जो 2010 में 1.6 बिलियन के आंकड़े से बढ़कर 2030 तक 2.2 बिलियन हो जाएगी. ग्लोबल लेवल पर अगले 5 सालों में मुस्लिम आबादी गैर-मुस्लिम आबादी की तुलना में लगभग दोगुनी दर से बढ़ने का अनुमान है. मुसलमानों के लिए औसत वार्षिक वृद्धि दर 1.5 फीसदी है, जबकि गैर-मुस्लिमों के लिए 0.7फीसदी है. अगर वर्तमान रुझान जारी रहता है तो 2030 में मुस्लिम दुनिया की कुल अनुमानित आबादी 8.3 बिलियन का 26.4 फीसदी हिस्सा बनेंगे, जो 2010 की अनुमानित विश्व आबादी 6.9 बिलियन का 23.4 फीसदी माना जाएगा.
प्यू रिसर्च सेंटर की रिपोर्ट के मुताबिक अगले 5 सालों में यानी साल 2030 में दुनिया के 79 देशों में दस लाख या उससे ज़्यादा मुस्लिम निवासी होंगे, जबकि आज यह संख्या 72 देशों की है. दुनिया के ज़्यादातर मुसलमान (करीब 60 फीसदी) एशिया-प्रशांत क्षेत्र में ही निवास करेगे, जबकि लगभग 20 फीसदी मध्य पूर्व और उत्तरी अफ़्रीका में रहेंगे. अनुमान ये भी है कि 2030 में 10 यूरोपीय देशों में मुसलमानों की कुल आबादी 10 फीसदी से अधिक होगी. रूस में 2030 के दौरान सबसे बड़ी मुस्लिम आबादी होने की संभावना है.
बता दें कि साल 2010 में रूस में मुस्लिम आबादी 16.4 मिलियन यानी 18 फीसदी थी, लेकिन साल 2030 में ये संख्या 18.6 मिलियन पहुंचने का अनुमान है, जो 20 फीसदी से ज्यादा हो जाएगा. इस तरह से देखा जाए तो अगले 5 सालों में रूस में मुस्लिम आबादी की वृद्धि दर सालाना 0.6% रहने का अनुमान है.
मुस्लिम जनसंख्या वृद्धि के मुख्य कारण
मुस्लिम आबादी में हो रही तेज़ वृद्धि के पीछे कई सामाजिक, सांस्कृतिक और आर्थिक कारण हैं.मुस्लिम समुदायों में जन्म दर औसतन अन्य धर्मों की तुलना में अधिक है.महिलाओं की औसत प्रजनन दर कई मुस्लिम देशों में 3.1 बच्चे प्रति महिला के करीब है. मुस्लिम आबादी में युवाओं का प्रतिशत अन्य धर्मों की तुलना में अधिक है. इससे जनसंख्या वृद्धि की गति अधिक बनी रहती है.बेहतर स्वास्थ्य सेवाओं और जीवन स्तर में सुधार के कारण मुस्लिम आबादी की औसत जीवन प्रत्याशा बढ़ी है. मुस्लिम जनसंख्या वृद्धि कई सामाजिक और आर्थिक प्रभाव डाल सकती है.अधिक जनसंख्या का मतलब बढ़ी हुई श्रम शक्ति और आर्थिक विकास के नए अवसर हो सकते हैं. मुस्लिम बहुल देशों में कंज्यूमर मार्केट का विस्तार होगा.