दुनिया की आबादी में पिछले कुछ वर्षों में बेहद तेज़ी से बढ़ोतरी हुई है. हजारों साल पहले धरती पर इंसानों की आबादी एक अरब तक पहुंचने में लंबा समय लगा था, लेकिन उसके बाद सिर्फ 200 वर्षों में यह संख्या आठ अरब तक पहुंच गई. खास बात यह है कि 1960 से अब तक, यानी केवल 65 वर्षों में दुनिया की आबादी 3 अरब से बढ़कर 8 अरब हो गई है.
हालांकि, इतनी तेज जनसंख्या वृद्धि के बावजूद आज भी कुछ देश ऐसे हैं, जहां जनसंख्या घट रही है. इनमें से एक देश तुवालु है, जो आज अपने अस्तित्व के संकट से जूझ रहा है.
तुवालु की घटती आबादी और अस्तित्व पर संकट
तुवालु, पश्चिम-मध्य प्रशांत महासागर में स्थित एक छोटा सा द्वीपीय देश है, अब जनसंख्या संकट का सामना कर रहा है. इस देश की कुल आबादी कभी लगभग 10 हजार थी, लेकिन अब इसमें गिरावट का दौर शुरू हो चुका है. ताजा आंकड़ों के अनुसार, तुवालु की आबादी में 1.80 प्रतिशत की कमी आई है और वर्तमान में यह संख्या 9 हजार से थोड़ी अधिक रह गई है. अगर यही स्थिति बनी रही, तो तुवालु पूरी तरह लुप्त होने की कगार पर पहुंच सकता है. यह देश ऑस्ट्रेलिया और हवाई के बीच स्थित है.
संयुक्त राष्ट्र की भविष्यवाणी- आबादी बढ़ती रहेगी
वर्ष 2011 में दुनिया की कुल जनसंख्या 7 अरब थी. मात्र 14 वर्षों के अंदर यह संख्या एक अरब और बढ़ गई. संयुक्त राष्ट्र का अनुमान है कि आने वाले वर्षों में यह संख्या लगातार बढ़ेगी. संयुक्त राष्ट्र की रिपोर्ट के अनुसार, 2030 तक विश्व की जनसंख्या 8.6 अरब तक पहुंच जाएगी. फिर 2050 तक यह आंकड़ा 9.8 अरब हो सकता है. वर्ष 2100 तक पूरी दुनिया की आबादी 11.2 अरब तक पहुंचने का अनुमान है.
यूक्रेन, जापान, ग्रीस: घटती आबादी वाले देश
दुनिया में कुछ देश ऐसे हैं, जिनकी आबादी में गिरावट साफ देखी जा रही है.
यूक्रेन में तो 2002 से 2023 के बीच केवल एक साल में ही 8.10 प्रतिशत की भारी गिरावट दर्ज की गई. इस गिरावट के पीछे मुख्य वजह देश में जारी युद्ध है, जिसमें हजारों लोगों की जान चली गई और बड़ी संख्या में नागरिकों ने दूसरे देशों में पलायन किया.
जापान की आबादी में भी 0.50 प्रतिशत की कमी आई है. हालांकि यहां की स्थिति कुछ अलग है. जहां अन्य देशों में पलायन और युद्ध कारण बनते हैं, वहीं जापान में केवल कम जन्मदर ही जनसंख्या घटने की वजह है. सरकार द्वारा कई प्रोत्साहन योजनाएं शुरू की गई हैं, लेकिन इसके बावजूद लोग बच्चों को जन्म देने के प्रति रुचि नहीं दिखा रहे हैं.
यूरोपीय देश ग्रीस में भी आबादी में गिरावट दर्ज की गई है. वहां एक ही दिन में 1.60 प्रतिशत की कमी देखी गई. इसी तरह सैन मारिनो की आबादी में 1.10 प्रतिशत, कोसोवो की आबादी में 1 प्रतिशत, और बेलारूस की आबादी में 0.60 प्रतिशत की गिरावट दर्ज की गई है. बेलारूस के साथ-साथ बोस्निया और अलबानिया में भी यही गिरावट देखी गई है.
युद्ध और पलायन से सबसे ज्यादा प्रभावित: यूक्रेन
यूक्रेन इस समय दुनिया का ऐसा देश बन गया है, जहां सबसे तेज़ी से आबादी घट रही है. वहां युद्ध के कारण हजारों लोग मारे जा चुके हैं, जबकि बड़ी संख्या में नागरिक दूसरे देशों में शरण लेने चले गए हैं. यही वजह है कि एक साल में ही यहां की जनसंख्या में 8 प्रतिशत से अधिक की गिरावट आ गई है.
जापान में केवल कम जन्मदर ही वजह
अन्य देशों की तुलना में जापान की स्थिति अलग है. यहां न तो युद्ध हो रहा है और न ही पलायन की बड़ी समस्या है. इसके बावजूद यहां की जनसंख्या में हर साल गिरावट आ रही है. वजह है– वहां के लोगों की जीवनशैली और सोच. युवा वर्ग शादी करने और बच्चे पैदा करने के प्रति उत्साहित नहीं है. सरकार द्वारा तमाम सुविधाएं और प्रोत्साहन देने के बाद भी स्थिति में खास बदलाव नहीं आया है.
यूरोप की घटती, एशिया की बढ़ती आबादी
अगर महाद्वीपों की बात की जाए तो यूरोप अकेला ऐसा महाद्वीप है, जहां जनसंख्या में लगातार कमी हो रही है. वहीं दूसरी ओर एशिया की जनसंख्या में तेज़ी से वृद्धि हो रही है.
भारत, चीन, पाकिस्तान और इंडोनेशिया जैसे बड़े देशों की वजह से एशिया विश्व का सबसे अधिक जनसंख्या वाला महाद्वीप बन गया है.
भविष्य में किन देशों को है जनसंख्या संकट का डर?
संयुक्त राष्ट्र के अनुसार, ग्रीस की वर्तमान आबादी लगभग 10 मिलियन (एक करोड़) है, लेकिन वर्ष 2100 तक यह घटकर 9 मिलियन (90 लाख) रह सकती है. इसी तरह रूस, इटली और दक्षिण कोरिया जैसे देशों पर भी घटती आबादी का खतरा मंडरा रहा है. यदि ये देश जनसंख्या स्थिरता के लिए ठोस कदम नहीं उठाते, तो भविष्य में आर्थिक और सामाजिक चुनौतियों का सामना करना पड़ सकता है.