राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) प्रमुख मोहन भागवत ने सोमवार (28 जुलाई, 2025) को कहा कि कट्टर हिंदू होने का मतलब दूसरों का विरोध करना नहीं है और हिंदू धर्म का सार सभी को गले लगाने में निहित है. आरएसएस से जुड़े ‘शिक्षा संस्कृति उत्थान न्यास’ की ओर से आयोजित राष्ट्रीय शिक्षा सम्मेलन ‘ज्ञान सभा’ में बोलते हुए भागवत ने मजबूत धार्मिक पहचान के बारे में एक आम गलतफहमी को दूर करने की कोशिश की.
उन्होंने दावा किया, ‘अक्सर यह गलतफहमी होती है कि कट्टर हिंदू होने का मतलब दूसरों को गाली देना है. ऐसी गलतफहमी हो सकती है. सच्चा हिंदू होने का मतलब किसी का विरोध करना नहीं है, न ही इसका मतलब यह है कि हमें यह कहकर जवाब देना होगा कि हम हिंदू नहीं हैं.’
हिंदू होने का सार सभी को गले लगाना
मोहन भागवत ने आगे कहा कि हम हिंदू हैं, लेकिन हिंदू होने का सार सभी को गले लगाना है. उन्होंने कहा, ‘जो कोई हिंदुओं को एकजुट करना चाहता है, उसे इस सार का ध्यान रखने की जरूरत है.’
सोने की चिड़िया नहीं, भारत को बनना होगा शेर
बता दें कि इससे पहले रविवार (27 जुलाई, 2025) को कोच्चि में एक राष्ट्रीय शिक्षा सम्मेलन को संबोधित करते हुए उन्होंने कहा था कि दुनिया सिर्फ आदर्शों का नहीं, बल्कि ताकत का भी सम्मान करती है. उन्होंने कहा कि भारत को अब अतीत की सोने की चिड़िया नहीं, बल्कि अब उसे शेर बनना होगा.
आरएसएस चीफ ने कहा कि भारतीय शिक्षा त्याग और दूसरों के लिए जीना सिखाती है. शिक्षा ऐसी होनी चाहिए जो किसी व्यक्ति को कहीं भी अपने दम पर जीवित रहने में मदद करे. जो चीज स्वार्थ को बढ़ावा देती है उसे सच्ची शिक्षा नहीं कहा जा सकता. भारत एक व्यक्तिवाचक संज्ञा है और इसका अनुवाद नहीं होना चाहिए. हमें बोलते और लिखते समय भारत को भारत ही रखना चाहिए.
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