कारोबार में पति को हुआ घाटा तो दाने-दाने को मोहताज हुई जूली, फिर अचार से आई जिंदगी में रौनक

कारोबार में पति को हुआ घाटा तो दाने-दाने को मोहताज हुई जूली, फिर अचार से आई जिंदगी में रौनक



<p>बिहार के सहरसा जिले के चांदनी चौक की रहने वाली जूली प्रवीण आज आत्मनिर्भरता की मिसाल बन चुकी हैं. कभी अपने पति के जूता-चप्पल के व्यवसाय में हुए घाटे से जूझ रही जूली ने अब अचार व्यवसाय में सफलता की नई कहानी लिखी है. न केवल उन्होंने अपने परिवार को आर्थिक संकट से उबारा, बल्कि तीन अन्य महिलाओं को रोजगार देकर उनके जीवन में भी सकारात्मक बदलाव लेकर आईं.</p>
<h3><strong>कोरोना में घर पर छाई कंगाली</strong></h3>
<p>जूली प्रवीण के पति मो. मेहताब पहले जूता-चप्पल का व्यवसाय चलाते थे. उनका काम ठीक-ठाक चल रहा था, लेकिन 2020 में कोरोना महामारी के कारण कारोबार ठप हो गया. लॉकडाउन और बाजार में आई मंदी के कारण उनकी बिक्री में भारी गिरावट आई और 2021 के अंत तक दुकान बंद करनी पड़ी. अचानक आए इस आर्थिक संकट ने पूरे परिवार को मुश्किल में डाल दिया.</p>
<h3><strong>जूली ने यूं दिखाई हिम्मत</strong></h3>
<p>पति के व्यवसाय में नुकसान होने के बाद जूली ने हार नहीं मानी. उन्होंने अचार बनाने के व्यवसाय के बारे में सोचा. जनवरी 2022 में उन्होंने सहरसा बस्ती में किराए पर एक छोटा-सा मकान लिया और वहीं से अचार बनाना शुरू किया. शुरुआत में उन्हें मात्र 50,000 रुपये की आमदनी हुई, लेकिन धीरे-धीरे उनका स्वाद ग्राहकों की जबान पर चढ़ गया.</p>
<h3><strong>राज्य सरकार की इस योजना से मिली मदद</strong></h3>
<p>इस दौरान जूली को मुख्यमंत्री उद्यमी योजना से 2 लाख रुपये का ऋण मिला, जिससे उन्होंने अपने व्यवसाय को और विस्तार दिया. अब जूली हर महीने 10 क्विंटल अचार बनाकर बाजार में बेच रही हैं. जूली प्रवीण ने समाचार एजेंसी आईएएनएस से बात करते हुए कहा, "मैंने कभी नहीं सोचा था कि अचार बनाने का काम इतना बड़ा रूप ले लेगा. अब मेरा सपना है कि मैं अपने इस व्यवसाय को और आगे बढ़ाऊं और ज्यादा से ज्यादा महिलाओं को रोजगार दूं." उन्होंने कहा कि लॉकडाउन के समय से ही हमने यह कारोबार शुरू किया. इसके बाद मैंने मुख्यमंत्री लघु उद्यमी योजना से दो लाख रुपये का लोन लिया. अब मेरा कारोबार बढ़ने लगा है. अब सालाना आठ से 10 लाख रुपये का कारोबार होता है.</p>
<h3><strong>पति ने बताई दिल की बात</strong></h3>
<p>मो. मेहताब ने कहा कि जूली ने हमारी जिंदगी बदल दी. जब हमारा पुराना व्यवसाय बंद हुआ, तब हम बहुत परेशान थे, लेकिन आज हम फिर से आत्मनिर्भर हो गए हैं. उन्होंने कहा कि हम अपने कारोबार को बढ़ाना चाहते हैं. हालांकि, शुरुआत में थोड़ी कठिनाई आई, लेकिन हम फोकस होकर अपने व्यवसाय पर ध्यान देते गए और आगे बढ़ते गए.&nbsp;</p>
<h3><strong>लगातार बढ़ रही अचार की डिमांड</strong></h3>
<p>जूली के बनाए अचार अब पूरे इलाके में मशहूर हो चुके हैं. वे 12 तरह के अचार तैयार करती हैं, जिनमें लाल मिर्च भरुआ, मिक्स अचार, हरी मिर्च, आंवला, कटहल, इमली कैरी और बिरयानी स्पेशल अचार प्रमुख हैं. उनके बनाए अचार की मांग आसपास के गांवों और शहरों में भी बढ़ रही है.&nbsp;</p>
<h3><strong>पति भी जमकर निभाते हैं साथ</strong></h3>
<p>जूली के इस सफर में उनके पति मो. मेहताब ने भी उनका पूरा साथ दिया. वे दुकान पर बिक्री के अलावा गांवों में भी अचार की सप्लाई का काम संभालते हैं. जूली अपने साथ खलीदा रजिया, गुलबसा और गुलजारा प्रवीण नामक तीन अन्य महिलाओं को भी रोजगार दे रही हैं. इन महिलाओं को वे रोजाना 200 रुपये मेहनताना देती हैं, जिससे उनके घर की स्थिति भी सुधर रही है.&nbsp;जूली प्रवीण दो बच्चों की मां हैं और अपने परिवार की जिम्मेदारियों के साथ-साथ सफल व्यवसाय भी चला रही हैं. उनका यह सफर दिखाता है कि अगर हौसला और मेहनत हो, तो किसी भी मुश्किल का सामना किया जा सकता है. आज वे न केवल अपने परिवार को आर्थिक रूप से मजबूत कर रही हैं, बल्कि अन्य महिलाओं को भी आत्मनिर्भर बनने की राह दिखा रही हैं.</p>
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