SCO Summit 2025: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी चीन के तियानजिन शहर पहुंच चुके हैं. वह 31 अगस्त से 1 सितंबर तक आयोजित शंघाई सहयोग संगठन (SCO) के शिखर सम्मेलन में हिस्सा लेंगे. यह यात्रा ऐसे समय हो रही है जब अमेरिका के साथ भारत के व्यापारिक संबंधों में ऊंचे टैरिफ के कारण तनाव देखा जा रहा है.
पूरी दुनिया की नजरें इस समय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की चीन यात्रा पर टिकी हैं. यह नई कूटनीतिक गतिविधि बदलते भू राजनीतिक हालात में सामने आई है, खासकर ट्रंप के ‘टैरिफ युद्ध’ के बाद. ऐसे में आइये जानते हैं कि चीनी मीडिया प्रधानमंत्री मोदी के दौरे को किस नजरिए से देख रहा है.
चीन भारत संबंधों में नई कूटनीतिक सक्रियता
पिछले पांच सालों में भारत और चीन के संबंध तनावपूर्ण रहे हैं, लेकिन हाल के दिनों में दोनों देश अपने मुद्दों को सुलझाने के लिए बातचीत कर रहे हैं. चीन के सरकारी अख़बार ‘चाइना डेली’ ने इस यात्रा को मोदी द्वारा भारत चीन संबंधों में नया मोमेंटम देने की तैयारी बताया. अख़बार में लिखा गया कि अमेरिका की एकतरफ़ा टैरिफ नीतियों और मुक्त व्यापार पर बढ़ते दबाव के बीच भारत के लिए चीन के साथ सहयोग महत्वपूर्ण है.
अमेरिका के टैरिफ़ और भारत की रणनीतिक स्वायत्तता
चाइना डेली ने लिखा कि अमेरिका की टैरिफ नीतियों के बाद भारत ने महसूस किया कि उसकी रणनीतिक स्वायत्तता बनाए रखना कितना अहम है. रूस से तेल खरीद रोकने में असफल रहने के कारण भारत अमेरिका के टैरिफ़ दबाव के बीच फंसा.
चीन के दृष्टिकोण से सहयोग और अवसर
अखबार ने सुझाव दिया कि भारत को चीन को प्रतिद्वंद्वी या खतरे के रूप में नहीं बल्कि साझेदार के रूप में देखना चाहिए. हांगकांग बेपटिस्ट यूनिवर्सिटी के रिसर्चर अर्जुन चटर्जी ने लिखा कि तियानजिन शिखर सम्मेलन में कनेक्टिविटी, लोगों के आने जाने, गैर खेती व्यापार और पर्यावरणीय साझेदारी पर समझौते से दोनों देशों के बीच व्यावहारिक सहयोग बढ़ सकता है.
भारत और अमेरिका के बीच व्यापारिक तनाव
सरकारी समाचार एजेंसी शिन्हुआ के अनुसार, अमेरिका ने 27 अगस्त से भारतीय निर्यात पर 25% अतिरिक्त ‘पेनल्टी टैरिफ़’ लगाया, जिससे भारत पर कुल टैरिफ़ 50% हो गया. प्रधानमंत्री मोदी ने कहा कि छोटे कारोबारियों, किसानों और पशुपालकों के हितों की रक्षा की जाएगी और भारत किसी भी दबाव का सामना करेगा.
भारत की संतुलित विदेश नीति
राष्ट्रवादी रुझान वाली वेबसाइट ‘गुआंचा’ में कहा गया कि भारत चीन के साथ रिश्ते सुधारकर अमेरिका के साथ अपनी सौदेबाज़ी क्षमता बढ़ाना चाहता है. मोदी पिछले साल से ही अमेरिका की ओर झुकाव वाली नीति को संतुलित करने की कोशिश कर रहे हैं, जबकि भारत एससीओ और क्वाड दोनों का हिस्सा है और किसी एक गुट के साथ पूरी तरह बंधा नहीं है.