GST on Petrol-Diesel: जीएसटी रिफॉर्म्स के तहत देश में 22 सितंबर से कईसारी जरूरी चीजों की कीमत कम होने वाली है. इससे आम आदमी को फायदा पहुंचने वाला है. अब सबसे बड़ा सवाल यह है कि पेट्रोल-डीजल को जीएसटी के दायरे में क्यों नहीं लाया जा रहा है, जबकि इनकी कीमतें आसमान छू रही हैं. देश के कईशहरों में पेट्रोल की कीमतें प्रति लीटर 100 रुपये के पार चली गई है, जबकि डीजल की कीमतें भी 90 रुपये प्रति लीटर को पार कर गई है. बढ़ती कीमतों की वजह से भी पेट्रोल-डीजल को जीएसटी के दायरे में नहीं लाए जाने की वजह सामने आ गई है.
इस वजह से जीएसटी के अंदर नहीं आएंगे पेट्रोल-डीजल?
सेंट्रल बोर्ड ऑफ इनडायरेक्ट टैक्स एंड कस्टम (CBIC) के चेयरमैन संजय कुमार अग्रवाल ने इसका जवाब देते हुए कहा कि पेट्रोल और डीजल को फिलहाल जीएसटी के दायरे में लाना संभव नहीं है क्योंकि इन पर मूल्य वर्धित कर (VAT) लगता है. इससे राज्यों के साथ-केंद्र सरकार को केंद्रीय उत्पाद शुल्क के रूप में अच्छा-खासा रेवेन्यू मिल जाता है.
न्यूज एजेंसी आईएएनएस से बात करते हुए उन्होंने कहा कि पेट्रोल और डीजल पर फिलहाल केंद्रीय उत्पाद शुल्क और मूल्य वर्धित कर (वैट) लगता है. इन दोनों पेट्रोलियम प्रोडक्ट्स से राज्यों को वैट के रूप में और केंद्र सरकार को केंद्रीय उत्पाद शुल्क के रूप में पर्याप्त रेवेन्यू मिलता है. संजय कुमार अग्रवाल आगे कहते हैं, ”रेवेन्यू को देखते हुए फिलहाल इन उत्पादों को जीएसटी के दायरे में नहीं लाया जा सकता.” CBIC चेयरमैन का यह बयान वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण के पिछले हफ्ते यह कहने के बाद आया कि केंद्र सरकार ने जानबूझकर पेट्रोल और डीजल को जीएसटी काउंसिल के प्रस्ताव में शामिल नहीं किया है.
पेट्रोल-डीजल का जीएसटी में शामिल होना तय था
वित्त मंत्री ने कहा था, कानूनी तौर पर हम तैयार हैं, लेकिन यह फैसला राज्यों को लेना होगा.” उनके अनुसार, पेट्रोल और डीजल का इसमें शामिल होना तय था. वित्त मंत्री ने कहा, “मुझे याद है कि जब जीएसटी लागू हुआ था, तब भी मेरे दिवंगत पूर्ववर्ती अरुण जेटली ने इस बारे में बात की थी.”
वित्त मंत्री सीतारमण ने कहा, “राज्यों की सहमति के बाद उन्हें काउंसिल में कराधान की दर तय करनी होगी. एक बार फैसला हो जाने के बाद, इसे अधिनियम में शामिल कर लिया जाएगा.” जुलाई 2017 में लागू जीएसटी में पेट्रोल, डीजल और मादक पेय जैसे उत्पादों को तब से इसके दायरे से बाहर रखा गया था. ये वस्तुएं उत्पाद शुल्क और वैट के जरिए केंद्र और राज्य सरकारों दोनों के लिए राजस्व का प्रमुख स्रोत हैं. ये कई राज्यों के लिए उनके कर राजस्व का 25-30 परसेंट से अधिक योगदान करते हैं.
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