जमीयत उलेमा-ए-हिंद की बैठक में UCC, बुल्डोजर एक्शन पर प्रस्ताव पास, कहा- ‘कुरान के…’

जमीयत उलेमा-ए-हिंद की बैठक में UCC, बुल्डोजर एक्शन पर प्रस्ताव पास, कहा- ‘कुरान के…’


Jamiyat Ulema-e-Hind : जमीयत उलेमा-ए-हिंद की कार्यकारी समिति की बैठक में आज यानी सोमवार (14 अप्रैल) को वक्फ संशोधन कानून के अलावा समान नागरिक संहिता, बुल्डोजर एक्शन और फिलिस्तीन पर इजरायल के अत्याचारों और गाजा में युद्ध अपराधों के खिलाफ भी प्रस्ताव पारित किया गया है.

जमीयत की बैठक में समान नागरिक संहिता से जुड़े प्रस्ताव के बारे जमीयत उलेमा ए हिंद ने कहा, “उत्तराखंड में समान नागरिक संहिता (UCC) के क्रियान्वयन और मुस्लिम पर्सनल लॉ को समाप्त करने को धार्मिक अधिकारों का खुला उल्लंघन मानती है. उत्तराखंड के बाद अब अन्य राज्यों से भी ऐसी खबर आ रहीं हैं कि वहां भी समान नागरिक संहिता के संबंध में सरकारी स्तर पर कोशिशें की जा रही हैं, जो कि राष्ट्रीय स्तर पर लोगों के लिए चिंता का विषय है.”

प्रस्ताव में जमीयत ने कहा, “UCC सिर्फ मुसलमानों की समस्या नहीं है, बल्कि इसका संबंध देश के विभिन्न सामाजिक समूहों, समुदायों, जातियों और सभी वर्गों से है. हमारा देश अनेकता में एकता का सर्वोच्च उदाहरण है, हमारे बहुलतावाद की अनदेखी करके जो भी कानून बनाया जाएगा, उसका सीधा असर देश की एकता और अखंडता पर पड़ेगा. यह अपने आप में समान नागरिक संहिता का विरोध करने का सबसे बड़ा कारण है.”

कुरान के दिशा-निर्देशों में किसी प्रकार का बदलाव नहीं किया जा सकता

मुस्लिम पर्सनल लॉ की वकालत करते हुए जमीयत ने प्रस्ताव में कहा, “मुस्लिम पर्सनल लॉ के प्रति मुसलमानों की अत्याधिक संवेदनशीलता का कारण यह है कि इस्लामी शरीयत का जीवन के सभी क्षेत्रों और सामाजिक और नैतिक पहलुओं पर प्रभाव है. पवित्र कुरान के दिशा-निर्देश ब्रह्मांड के रचयिता की ओर से निर्धारित किए गए हैं और उनमें किसी भी प्रकार का बदलाव नहीं किया जा सकता. मुस्लिम पर्सनल लॉ या मुस्लिम पारिवारिक कानूनों को समाप्त करने का प्रयास लोकतंत्र की भावना और भारत के संविधान में प्रदत्त गारंटी के खिलाफ है. जब इस देश का संविधान बनाया जा रहा था तो संविधान सभा ने यह गारंटी दी थी कि मुसलमानों के धार्मिक मामलों, विशेषकर उनके व्यक्तिगत कानूनों के साथ कोई छेड़छाड़ नहीं की जाएगी. भारतीय संविधान के अनुच्छेद 25 से 29 का उद्देश्य और लक्ष्य यही है.”

बुलडोजर एक्शन पर क्या बोली जमीयत

बुलडोजर एक्शन के खिलाफ जमीयत ने प्रस्ताव पारित करते हुए कहा, “वह सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों की खुलेआम अवहेलना करते हुए देश के विभिन्न राज्य सरकारों की ओर से की जा रही बुलडोजर कार्रवाईयों पर अपनी गहरी चिंता व्यक्त करती है. सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट रूप से निर्देश दिया है कि किसी भी प्रकार के विध्वंस से पहले पूरी कानूनी प्रक्रिया, नोटिस और प्रभावित पक्ष को सुनवाई का अवसर प्रदान करना जरूरी है, इसके बावजूद हाल के दिनों में यह निराशाजनक प्रवृत्ति देखने में आई है कि बिना किसी पूर्व सूचना या कानूनी कार्रवाई के, लोगों, विशेष रूप से कमजोर, वंचित और विशेष वर्ग से संबंध रखने वाले लोगों के घरों और संपत्तियों को निशाना बनाया जा रहा है.”

कार्यकारी समिति कि बैठक में प्रस्ताव पारित किया गया कि इस तरह की कार्रवाइयां न केवल कानून के शासन का उल्लंघन करती हैं, बल्कि न्याय, समानता और लोकतंत्र के उन मौलिक सिद्धांतों को भी कमजोर करती हैं जिन पर हमारी लोकतांत्रिक प्रणाली आधारित है. बुलडोजर का प्रयोग सजा और भय के रूप में राज्य संस्थाओं में जनता के विश्वास को कमजोर करता है और मनमानी और प्रतिशोधात्मक कार्रवाइयों को बढ़ावा देता है. यह सभा उन सभी विध्वंस कार्यों की कड़ी निंदा करती है जो निर्धारित कानूनी नियमों की उपेक्षा करके किए गए.

बुलडोजर एक्शन के खिलाफ कार्यकारी समिती ने रखी मांग

बुलडोजर एक्शन के खिलाफ कार्यकारी समिति ने मांग की है कि सभी संवैधानिक संस्थाएं, विशेषकर न्यायपालिका, इन उल्लंघनों का गंभीरता से नोटिस लें और जिम्मेदार लोगों को कानून के अनुसार जवाबदेह ठहराया जाए. इसके अलावा, केंद्र और राज्य सरकारों का ध्यान आकर्षित किया जाता है कि वह प्रत्येक प्रशासनिक कार्रवाई में संवैधानिक सिद्धांतों और न्यायिक निर्देशों के पूर्ण रूप से पालन को सुनिश्चित करें, विशेषकर उन कार्यों में जो लोगों के जीवन, आजीविका और आत्म-सम्मान से संबंधित हों.

जमीयत की समिति में फिलिस्तीन को समर्थन में प्रस्ताव पारित

इसके अलावा जमीयत की कार्यकारी समिति ने फिलिस्तीन पर इजरायल के हमलों के खिलाफ भी प्रस्ताव पारित किया है. जमीअत उलमा-ए-हिंद ने कहा, “वह गाजा में जारी इजरायल के दमनकारी रवैये, युद्ध अपराध और निर्दोष फिलिस्तीनी लोगों के नरसंहार को मानवता के खिलाफ गंभीर अपराध मानती है. हजारों बच्चों, महिलाओं और नागरिकों की निर्मम हत्या प्रभावशाली वैश्विक शक्तियों और अंतरराष्ट्रीय संस्थाओं के लिए चिंताजनक पहलू और शर्मनाक उदासीनता का प्रतीक है.”

कार्यकारी समिति ने इस मुद्दे पर गहरी चिंता जताते हुए कहा, “इजरायल अंतरराष्ट्रीय कानूनों और बुनियादी मानवीय सिद्धांतों का उल्लंघन करते हुए न केवल फिलिस्तीनी क्षेत्रों की पूरी नाकेबंदी किए हुए है, बल्कि युद्धग्रस्त क्षेत्रों में भोजन, दवा और जीवन की बुनियादी आवश्यकताओं की आपूर्ति पर भी पूर्ण प्रतिबंध लगाए हुए है, जो कि अपराध पर अपराध के समान है.”

फिलिस्तीन के मुद्दे पर जमीयत ने अमेरिका को आड़े हाथों लिया है और कहा कि अमेरिका भी इजरायल का सहयोगी है, जो लगातार आक्रामक इजरायली सरकार को हर स्तर पर समर्थन प्रदान कर रहा है. इसके साथ कई इस्लामी देशों के ठंडा रवैया, निष्क्रियता और अप्रभावी तरीका भी निराशाजनक और निंदनीय है.

फिलिस्तीन के मुद्दे पर जमीयत की कार्यकारी समिति ने भारत सरकार से 4 मांगें भी की है

  1. जमीअत उलमा-ए-हिंद भारत सरकार से जोरदार ढंग से मांग करती है कि वह मानवीय आधार पर तत्काल हस्तक्षेप करते हुए युद्ध विराम को सुनिश्चित करने में सक्रिय भूमिका निभाए, विशेष रूप से घायल फिलिस्तीनियों के उपचार और देखभाल के लिए ठोस और प्रभावी उपाय करे और गाजा में घिरे हुए फिलिस्तीनी लोगों तक बुनियादी मानवीय जरूरतें प्रदान करने के लिए हरसंभव प्रयास किया जाए.
  2. इस सभा की मांग है कि इजरायल पर युद्ध अपराधों और मानवाधिकार के गंभीर उल्लंघनों के लिए भारी जुर्माना लगाया जाए और प्रभावित फिलिस्तीनी लोगों को पूर्ण वित्तीय मुआवजा दिया जाए.
  3. यह सभा भारत सरकार, अरब लीग और सभी इस्लामिक देशों से अपील करती है कि वह इजरायली अत्याचारों को रोकने के लिए स्पष्ट, एकजुट और प्रभावी कूटनीतिक, राजनीतिक और कानूनी दबाव डालें, ताकि दमनकारी और उपनिवेशवादी कब्जाधारी शासन को उसके अपराधों का दंड दिया जा सके.
  4. यह सभा अंतरराष्ट्रीय समुदाय से अपील करती है कि फिलिस्तीनियों के लिए एक स्वतंत्र, संप्रभु राज्य की स्थापना के लिए गंभीर, प्रभावी और उपयोगी प्रयास शुरू करे और साथ ही यह भी स्पष्ट कर देना आवश्यक है कि अल-अक्सा मस्जिद पर इजरायल के कब्जे का कोई भी प्रयास किसी भी स्थिति में स्वीकार्य नहीं किया जा सकता.



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