जस्टिस यशवंत वर्मा से SC का सख्त सवाल: इन हाउस कमेटी को अवैध मानते हो तो पेश क्यों हुए?

जस्टिस यशवंत वर्मा से SC का सख्त सवाल: इन हाउस कमेटी को अवैध मानते हो तो पेश क्यों हुए?


कैश कांड में गंभीर आरोपों का सामना कर रहे इलाहाबाद हाई कोर्ट के जस्टिस यशवंत वर्मा को सुप्रीम कोर्ट ने आड़े हाथों लिया. इस मामले की जांच करने वाली इन हाउस कमिटी के गठन को चुनौती दे रहे वर्मा से कोर्ट ने पूछा कि उन्होंने यह पहले क्यों नहीं कहा? कोर्ट ने कहा, “आप कमिटी सामने पेश हुए. शायद अपने पक्ष में निष्कर्ष की उम्मीद कर रहे थे. जब ऐसा नहीं हुआ तब याचिका दाखिल की.”

हालांकि, जस्टिस दीपांकर दत्ता और ऑगस्टिन जॉर्ज मसीह की बेंच ने कहा कि वह इस याचिका पर बुधवार, 30 जुलाई को सुनवाई करेंगे. जजों ने जस्टिस वर्मा के लिए पेश वरिष्ठ वकील कपिल सिब्बल से कहा कि वह अपनी दलीलों को संक्षिप्त बिंदुओं के तौर पर लिखित रूप में दें. कोर्ट ने कई सवाल भी पूछे हैं.

सुप्रीम कोर्ट के सवाल :-

  • अगर आप जांच कमिटी की रिपोर्ट को चुनौती दे रहे हैं, तो उसे अपनी याचिका के साथ दाखिल क्यों नहीं किया?
  • अगर आप कमिटी के गठन को अवैध मानते हैं, टी कमिटी के सामने क्यों पेश हुए?
  • आप कहते हैं कि सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस जांच नहीं करवा सकते, तो जज के कदाचार की जानकारी मिलने पर उन्हें क्या करना चाहिए?
  • राष्ट्रपति संवैधानिक प्रमुख हैं, वही जजों को नियुक्त करती हैं. आप राष्ट्रपति को कमिटी की रिपोर्ट भेजने का विरोध क्यों कर रहे हैं?
  • अब जब संसद में आपको पद से हटाने की प्रक्रिया शुरू हो चुकी है, तब सुप्रीम कोर्ट क्या आदेश दे सकता है?

कोर्ट ने इस बात पर भी सवाल उठाए कि जस्टिस वर्मा की याचिका में प्रतिवादी के तौर पर पहले नंबर पर सिर्फ केंद्र सरकार लिखा है. इसके बाद दूसरे और तीसरे नंबर पर सुप्रीम कोर्ट ऑफ इंडिया लिखा है. इसमें किसी अधिकारी के पद या किसी विभाग का नाम नहीं लिखा है. जस्टिस दत्ता ने कहा कि याचिका लापरवाह तरीके से बनाई गई है. इस पर कपिल सिब्बल ने कहा कि वह पक्षकारों की लिस्ट को संशोधित कर देंगे.

सुनवाई के दौरान कपिल सिब्बल न संविधान के अनुच्छेद 124 और 217 का हवाला दिया. उन्होंने कहा कि जज को हटाने की प्रक्रिया यही है कि प्रस्ताव संसद के किसी सदन में लाया जाए. सदन के अध्यक्ष आरोपों की जांच के लिए कमिटी बनाते हैं. चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया की तरफ से कमिटी बनाने का प्रावधान कानून में नहीं है.

सिब्बल ने यह भी कहा कि संसद की तरफ से बनाई गई कमिटी की रिपोर्ट आने से पहले सदन में आरोपों की चर्चा नहीं होती. लेकिन जस्टिस वर्मा के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने वीडियो सार्वजनिक कर दिया. सभी आंतरिक पत्राचार भी सार्वजनिक कर दिया. हर कोई उस पर चर्चा करने लगा. फैसला सुनाने लगा. यह नहीं होना चाहिए था.

क्या है मामला?
इस साल 14 मार्च को जस्टिस यशवंत वर्मा के दिल्ली के घर पर आग लगी थी. उस समय वह दिल्ली हाई कोर्ट के जज थे. आग बुझने के बाद पुलिस और दमकल कर्मियों को वहां बड़ी मात्रा में जला हुआ कैश दिखा. सुप्रीम कोर्ट के तत्कालीन चीफ जस्टिस संजीव खन्ना ने 22 मार्च को मामले की जांच के लिए 3 जजों की कमिटी बनाई. इसमें पंजाब-हरियाणा हाई कोर्ट के चीफ जस्टिस शील नागू, हिमाचल प्रदेश हाई कोर्ट के चीफ जस्टिस जी एस संधावलिया और कर्नाटक हाई कोर्ट की जज अनु शिवरामन शामिल थे.

जांच कमिटी ने 4 मई को अपनी रिपोर्ट तत्कालीन चीफ जस्टिस को दी. इस रिपोर्ट में जस्टिस यशवंत वर्मा को दुराचरण का दोषी माना गया. 8 मई को चीफ जस्टिस ने रिपोर्ट को राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री को आगे की कार्रवाई के लिए भेज दिया. इसी रिपोर्ट और सिफारिश के विरोध में जस्टिस यशवंत वर्मा बे याचिका दाखिल की है.



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