Taslima Nasrin: बांग्लादेश की निर्वासित लेखिका तस्लीमा नसरीन जबलपुर पहुंची हैं. वह बंग भाषियों की संस्था सिद्धि बाला बोस के शताब्दी वर्ष समारोह में हिस्सा लेने यहां पहुंची हैं. इस मौके पर शहीद स्मारक में उनके मशहूर उपन्यास लज्जा का मंचन भी हुआ. दिल्ली की नवपल्ली नाट्य संस्था बंगला भाषा में लज्जा का मंचन करेगी. बांग्लादेश के मौजूदा हालात पर तस्लीमा नसरीन ने कहा कि बांग्लादेश के इतिहास को नष्ट किया जा रहा है.
‘बांग्लादेश में जल्द से जल्द निष्पक्ष चुनाव हों’
उन्होंने कहा, “बांग्लादेश को जमाते इस्लामी के जिहादियों ने अपने कब्जे में कर रखा है. जमाते इस्लामी पर तुरंत बैन लगाना चाहिए. वे न सिर्फ अल्पसंख्यकों, बल्कि वहां के स्वतंत्रा संग्राम सेनानियों को भी खत्म कर रहे हैं. ये लोग बांग्लादेश के संस्थापक मुजीबुर्ररहमान के घर परिजनों, उनकी विरासत, विचारधारा सबको खत्म करने में जुटे हैं. पाकिस्तान समर्थित जमाते इस्लामी का लोकतंत्र और धर्मनिरपेक्षता में विश्वास नहीं है. बांग्लादेश में जल्द से जल्द निष्पक्ष चुनाव हों.”
महाकुंभ को लेकर क्या बोलीं तस्लीमा नसरीन
तस्लीमा नसरीन ने कहा कि धर्म आधारित राजनीति खतरनाक है. उन्होंने कहा, जहां लोकतंत्र नहीं वहां विचारों की स्वतंत्रा भी नहीं है. लोकतंत्र के अभाव में महिलाओं और अल्पसंख्यक दोनों को तकलीफ उठानी पड़ती है. सबको धार्मिक स्वतंत्रा का अधिकार होना चाहिए. महाकुंभ पर पूछे गए सवाल पर तस्लीमा ने कहा कि सभी तरह के लोगों ने कुंभ में स्नान किया.
तस्लीमा नसरीन को अपने उपन्यास लज्जा के कारण बांग्लादेश छोड़ना पड़ा था. इस उपन्यास के कारण वह कट्टरपंथियों के निशाने पर आईं और उन पर इस्लाम की छवि को नुकसान पहुंचाने तक का आरोप लगा था. कई मौलवियों ने उनके खिलाफ सजा-ए-मौत के फतवे जारी कर दिए थे. हालात इतने बिगड़े कि उन्हें बांग्लादेश की सरकार ने देश से निकाल दिया, जिसके बाद उन्हें भारत में शरणार्थी बनकर रहना पड़ा.
स्लीमा नसरीन का बांग्ला भाषा में लिखा गया लज्जा पांचवां उपन्यास था. उन्होंने अपने लेखों में महिला उत्पीड़न और धर्म की आलोचना की. हालांकि, उनकी किताबों और उपन्यासों को पसंद तो किया गया, लेकिन उनके खिलाफ कई फतवे भी जारी किए गए. हजारों कट्टरपंथी सड़कों पर उतर आए और उन्हें फांसी की सजा देने की मांग की.
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