Delhi Assembly Election Results 2025: 27 सालों के बाद बीजेपी दिल्ली में सत्ता में वापसी कर रही है. दिल्ली विधानसभा चुनाव में पार्टी को स्पष्ट बहुमत मिला है. इससे पहले दिल्ली में भाजपा के तीन मुख्यमंत्री रह चुके हैं – मदन लाल खुराना, साहिब सिंह वर्मा और सुषमा स्वराज . चौथे मुख्यमंत्री की घोषणा जल्द ही की जाएगी.
भाजपा ने 1993 से 1998 के बीच दिल्ली पर शासन किया था. इस दौरान पार्टी को राजनीतिक घोटाले और अंदरूनी कलह देखने को मिली थी. इससे पार्टी को नुकसान हुआ था. आइये भाजपा के तीन पूर्व दिल्ली मुख्यमंत्रियों और उनके कार्यकाल पर एक नजर डालते हैं.
मदन लाल खुराना (दिसंबर 1993-फरवरी 1996)
69वें संविधान संशोधन अधिनियम, 1991 के माध्यम से राज्य विधान सभा को बहाल किए जाने के बाद खुराना दिल्ली की सेवा करने वाले पहले मुख्यमंत्री थे. नवंबर 1993 में हुए विधानसभा चुनाव भाजपा को 49 सीटें मिलीं थी और कांग्रेस को 14. खुराना एक लोकप्रिय नेता थे, जिन्हें दिल्ली में पार्टी को मजबूत करने के उनके प्रयासों के लिए “दिल्ली का शेर” के रूप में जाना जाता था. हालांकि वे सत्ता में अपना कार्यकाल पूरा नहीं कर सके.
1995 में खुराना का नाम कुख्यात हवाला कांड में आया, जिसमें विभिन्न दलों के नेता शामिल थे. बढ़ते राजनीतिक दबाव के कारण उन्हें एक साल से भी कम समय में इस्तीफा देना पड़ा.
साहिब सिंह वर्मा (फरवरी 1996-अक्टूबर 1998)
मदन लाल खुराना के इस्तीफे के बाद 27 फरवरी 1996 को साहिब सिंह वर्मा के लिए दिल्ली के दूसरे भाजपा मुख्यमंत्री (और कुल मिलाकर चौथे) के रूप में शपथ ली. उन्हें खुराना के विरोध का सामना करना पड़ा, जिसके कारण दोनों नेताओं के बीच सत्ता संघर्ष और पार्टी के भीतर अंदरूनी कलह पैदा हो गई.
साहिब सिंह वर्मा को प्याज की आसमान छूती कीमतों जैसे आर्थिक मुद्दों से जूझना पड़ा, जो 1998 में दिवाली के आसपास कथित तौर पर 60 रुपये प्रति किलोग्राम तक पहुंच गई थी.वह दिल्ली में बिजली और पानी के संकट को संभालने में भी विफल रहे. इन सभी कारणों से भाजपा के खिलाफ जनता में असंतोष भड़क उठा और वर्मा को 1998 के विधानसभा चुनाव से कुछ महीने पहले ही पद छोड़ना पड़ा. उनका कार्यकाल दो साल और 228 दिनों तक चला.
सुषमा स्वराज (अक्टूबर-दिसंबर 1998)
साहिब सिंह वर्मा के बाद सुषमा स्वराज दिल्ली की पहली महिला मुख्यमंत्री बनीं. भाजपा को उम्मीद थी कि केंद्र शासित प्रदेश में सत्ता विरोधी लहर से लड़ने में एक नया चेहरा मददगार साबित होगा. अपने 52 दिनों के कार्यकाल के दौरान स्वराज को कई मोर्चों पर संघर्ष करना पड़ा.
कार्यभार संभालने के तुरंत बाद मुख्यमंत्री ने प्याज की आपूर्ति बहाल करने के लिए एक समिति गठित की, ताकि कीमतों को कम करने में मदद मिल सके. कथित तौर पर स्वराज ने दिल्ली भर में प्याज वितरित करने के लिए वैन की भी व्यवस्था की. हालांकि उनकी ये कोशिश भाजपा की डूबती नैया को नहीं बचा पाई. विधानसभा चुनाव में कांग्रेस 52 सीटें जीतकर सत्ता में आई. इसके बाद पार्टी ने 15 साल तक दिल्ली में राज किया.