BJP and Sufism: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने शुक्रवार को दिल्ली में ‘जहान-ए-खुसरो’ के 25वें संस्करण को संबोधित करते हुए सूफी परंपरा और 13वीं सदी के सूफी कवि और संगीतकार अमीर खुसरो की खूब तारीफ की. प्रधानमंत्री ने यह भी बताया कि गुजरात का मुख्यमंत्री रहते हुए उन्होंने किस तरह अहमदाबाद की एक सूफी मस्जिद ‘सरखेज रोजा’ के जीर्णोद्धार कराया था. पीएम मोदी ने जिस अंदाज में इस समारोह में सूफीवाद पर जोर दिया, उससे साफ जाहिर हुआ कि बीजेपी ने जो फोकस पसमांदा मुस्लिम समुदाय पर बना रखा है, वही पहुंच अब वह सूफीवाद के लिए अपना रही है.
बीजेपी अल्पसंख्यक मोर्चा काफी पहले से ही सूफियों को अपने साथ जोड़ने का अभियान शुरू कर चुका है. साल 2022 से अब तक देश भर से सूफी खानकाहों या स्थलों से जुड़े 14,000 लोगों को बीजेपी ने अपने साथ जोड़ा है.
भाजपा नेताओं का कहना है कि सूफीवाद भारतीय इस्लाम का सार है और बीजेपी इसी तथ्य को ही पेश करना चाहती है. इसीलिए ही इस समुदाय के लोगों को पार्टी से जोड़ा जा रहा है. भाजपा का मानना है कि मध्य युग के मुस्लिम कवियों के बीच भगवान कृष्ण जैसे हिंदू देवताओं के प्रति अपार श्रद्धा थी और उनकी रचनाएं इसका उदाहरण भी है. इस तरह की सोच को बढ़ावा देने से कट्टरपंथी सोच को खत्म किया जा सकता है.
‘गंगा-जमुना तहजीब है सूफीवाद की आत्मा’
बीजेपी अल्पसंख्यक मोर्चा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जमाल सिद्दीकी ने इंडियन एक्सप्रेस को बताया, ‘सूफीवाद भारतीय संस्कृति का हिस्सा है और यह कट्टरपंथ से निपटने और शांति को बढ़ावा देने में योगदान दे सकता है. इसका उद्देश्य मनुष्यों का ईश्वर से सीधा संपर्क बनाना है, जिन्हें अलग-अलग लोग अल्लाह, राम, कृष्ण, क्राइस्ट या वाहे गुरु के रूप में पूजते हैं.’
उन्होंने कहा, ‘भारत में सूफीवाद के पतन के कारण कट्टरपंथ बढ़ा. यह (कट्टरपंथ) मुसलमानों को सबसे अधिक नुकसान पहुंचाता है. सूफीवाद समुदाय की सीमाओं के भीतर काम नहीं करता. गंगा-जमुना तहजीब (बहुलवादी संस्कृति) इसकी आत्मा है.’ जमाल सिद्दकी ने यह भी कहा कि पीएम मोदी ने कार्यक्रम में जो संदेश दिया है, उसे मुसलमानों को समझने की कोशिश करनी चाहिए.
‘न दूरी है न खाई है, मोदी हमारा भाई है’
बीजेपी ने पिछले कुछ समय में पिछड़े मुस्लिम समुदाय ‘पसमांदा’ को अपने साथ जोड़ने के लिए कई कोशिशें की हैं. अब वही पहल सूफीवाद के लिए हो रही है. साल 2023 में इसी तरह के एक अभियान में भाजपा अल्पसंख्यक मोर्चा ने ‘सूफी संवाद महाअभियान’ के तहत एक कार्यक्रम आयोजित किया, जिसमें 100 से अधिक दरगाहों से लगभग 200 सूफी आए थे. इस कार्यक्रम में आए सूफियों से मोदी सरकार की नीतियों और योजनाओं को आम मुसलमानों तक ले जाने का आग्रह किया गया था. इसी तरह देशभर में सूफियों तक पहुंचने के लिए विभिन्न समितियों का भी गठन किया गया. 2023 में तो एक नारा भी दिया गया कि ‘न दूरी है न खाई है, मोदी हमारा भाई है’
मुस्लिम समुदाय तक पहुंच की कोशिश
यह जगजाहिर है कि मुस्लिम समुदाय का एक बड़ा हिस्सा या कहें कि लगभग पूरा समुदाय भाजपा का समर्थक नहीं रहा है. बीजेपी की आइडियोलॉजी, भाजपा सरकारों की कुछ नीतियां और नेताओं के विवादित बयान इसके कारण रहे हैं. अब बीजेपी की कोशिश है कि मुस्लिम समाज के अलग-अलग समुदायों तक इस तरह पहुंच बनाई जाए, जिससे पार्टी की हिंदुत्व की छवि पर भी कोई असर न हो और मुस्लिम समुदाय को भी धीरे-धीरे अपने वोटर्स के रूप में तब्दील किया जा सके.
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