तुर्किए के राष्ट्रपति रेसेप तैयप एर्दोगन (खलीफा) को उस वक्त बड़ा झटका लगा, जब अमेरिका ने तुर्किए को F-35 लड़ाकू विमान बेचने से साफ इनकार कर दिया. इस फैसले का बड़ा कारण तुर्किए का रूस से S-400 मिसाइल डिफेंस सिस्टम खरीदना है, जिसे अमेरिका ने नाटो सुरक्षा ढांचे के लिए खतरा बताया था. इसके बाद तुर्किए को F-35 कार्यक्रम से बाहर कर दिया गया, जिससे एर्दोगन की महत्वाकांक्षाओं को बड़ा धक्का लगा.
F-35 विवाद के बाद एर्दोगन ने अब ब्रिटेन का रुख किया है. मिडिल ईस्ट आई की रिपोर्ट के अनुसार, तुर्किए और ब्रिटेन के बीच 40 यूरोफाइटर टाइफून विमानों को लेकर एक अस्थायी समझौता तैयार हो चुका है. ब्रिटेन के रक्षा सचिव जॉन हीली इस्तांबुल में आयोजित IDEF हथियार मेले के दौरान इस समझौते पर हस्ताक्षर कर सकते हैं. यह डील ब्रिटेन के नेतृत्व वाले यूरोफाइटर कंसोर्टियम के तहत होगी, जिसमें जर्मनी, इटली और स्पेन जैसे देश भी शामिल हैं. ऐसे में इन सभी देशों की सहमति जरूरी होगी. 2024 में तुर्किए ने जर्मनी के पहले के वीटो को पार कर लिया था, जिससे डील की संभावना मजबूत हुई.
क्यों जरूरी हो गया है टाइफून
तुर्किए की वायुसेना में इस्तेमाल हो रहे F-16 और अन्य अमेरिकी विमान पुराने पड़ते जा रहे हैं और KAAN नामक घरेलू पांचवीं पीढ़ी का फाइटर जेट 2028 तक तैयार नहीं होगा. ऐसे में तुर्किए को एक ब्रिज कैपेबिलिटी की जरूरत है और यूरोफाइटर टाइफून एक बेहतरीन विकल्प बनकर सामने आया है. ताजा सौदे में यूरोफाइटर का Tranche 4 वेरिएंट प्रस्तावित है, जो अत्याधुनिक एवियोनिक्स, AESA रडार और मल्टीरोल क्षमताओं से लैस है.
दाम पर खींचतान टेक्नोलॉजी ट्रांसफर की शर्त
2024 की शुरुआत में ब्रिटेन ने 40 विमानों के लिए लगभग 12 अरब डॉलर की कीमत बताई थी, जिसे तुर्किए ने महंगा माना. यह डील केवल कीमत पर नहीं, बल्कि तकनीकी हस्तांतरण (Technology Transfer) और तुर्किए पायलटों के प्रशिक्षण पर भी निर्भर है. तुर्किए के पायलटों ने अभी तक यूरोपीय लड़ाकू विमानों का संचालन नहीं किया है. वे अब तक अमेरिकी प्लेटफॉर्म पर निर्भर रहे हैं. मौजूदा समय में तुर्किए ने कतर से सेकंड हैंड यूरोफाइटर खरीदने पर भी विचार किया है ताकि जरूरत के हिसाब से डिलीवरी जल्दी हो सके.
सामरिक और राजनीतिक समीकरण
इस डील के पीछे सिर्फ सैन्य जरूरतें ही नहीं, बल्कि भू-राजनीतिक संतुलन भी महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है. अमेरिका से दूरी बनाते हुए तुर्किए अब यूरोप और ब्रिटेन के साथ अपने सामरिक रिश्ते मजबूत करने की कोशिश कर रहा है. ब्रिटेन के लिए भी यह डील ब्रेक्सिट के बाद नए रक्षा साझेदार तलाशने की रणनीति का हिस्सा है. यूरोफाइटर की बिक्री ब्रिटिश रक्षा उद्योग को वित्तीय और राजनीतिक रूप से मजबूती प्रदान कर सकती है.
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