पाकिस्तान नहीं सुधरेगा! ऑपरेशन सिंदूर में तबाह आतंकी शिविरों को फिर से बसाया, ISI ने दिया फंड

पाकिस्तान नहीं सुधरेगा! ऑपरेशन सिंदूर में तबाह आतंकी शिविरों को फिर से बसाया, ISI ने दिया फंड


भारत के ऑपरेशन सिंदूर के दौरान तबाह किए गए आतंकी लॉन्च पैड और प्रशिक्षण शिविरों को पाकिस्तान ने फिर से बनाना शुरू कर दिया है. पुनर्निर्माण की इस प्रक्रिया में आतंकियों को पाकिस्तानी सेना, इंटर-सर्विसेज इंटेलिजेंस (ISI) और सरकारी अधिकारियों का पूरा समर्थन मिल रहा है.
 
एनडीटीवी की रिपोर्ट के अनुसार नए सिरे से की जा रही यह गतिविधियां पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर (PoK) और आस-पास के इलाकों खासकर नियंत्रण रेखा (LoC) के करीब केंद्रित है. 

‘घने जंगलों में छोटे, हाई-टेक आतंकी ठिकानों का निर्माण’ 
रिपोर्ट में खुफिया इनपुट के आधार पर दावा किया गया है कि भारतीय सेना की निगरानी से बचने के लिए पाकिस्तान घने जंगलों में छोटे, हाई-टेक आतंकी ठिकानों का निर्माण करा रहा है. इन नए शिविरों का मकसद मई में भारत के सटीक हमलों के दौरान ध्वस्त किए गए बुनियादी ढांचे की भरपाई करना है, जिसमें लश्कर-ए-तैयबा (LeT), जैश-ए-मोहम्मद (JeM), हिजबुल मुजाहिदीन और द रेजिस्टेंस फ्रंट (TRF) सहित कई आतंकी संगठनों को ठिकानों को निशाना बनाया गया था.

दोबारा बनाए जा रहे आतंकी शिविरों में वो शिविर भी शामिल हैं, जो पहले लूनी, पुटवाल, टीपू पोस्ट, जमील पोस्ट, उमरांवाली, चपरार फॉरवर्ड, छोटा चक और जंगलोरा जैसे क्षेत्रों में स्थित थे. खुफिया अधिकारियों के मुताबिक आईएसआई अब अपने आतंकी प्रशिक्षण नेटवर्क को कई हिस्सों में बांटने की रणनीति पर काम कर रही है.

‘एक शिविर में 200 से कम आतंकी’
NDTV की रिपोर्ट के मुताबिक बड़ी आसानी से पहचानी जा सकने वाली सुविधाओं के बजाय नई योजना में कई छोटे शिविर शामिल हैं, जिनमें से प्रत्येक में 200 से कम आतंकी हैं, जिससे भविष्य में हवाई हमलों की स्थिति में महत्वपूर्ण नुकसान की संभावना कम हो जाती है.

हाल ही में दक्षिणी पंजाब के बहावलपुर में एक महत्वपूर्ण बैठक हुई, जो जैश-ए-मोहम्मद का जाना-माना केंद्र है. इस बैठक में जैश, लश्कर, हिजबुल मुजाहिदीन और टीआरएफ के टॉप कमांडरों के साथ-साथ आईएसआई के कार्यकर्ता भी शामिल थे.

एनडीटीवी ने बताया कि बहावलपुर ऑपरेशन सिंदूर का मुख्य लक्ष्य था, जो पहलगाम आतंकी हमले के बाद शुरू किया गया था. इसकी वजह आतंकी समूहों के लिए इसका रणनीतिक महत्व था. बैठक के एजेंडे में परिचालन कमान का पुनर्गठन, हथियारों का पुनर्वितरण इसके अलावा पाकिस्तान के भीतर और जम्मू-कश्मीर में आतंकियों की भर्ती के प्रयासों को फिर से शुरू करना शामिल था.

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