पाकिस्तान में इस अल्पसंख्यक ने जीता चुनाव, जानें क्यों अहम है ये सीट

पाकिस्तान में इस अल्पसंख्यक ने जीता चुनाव, जानें क्यों अहम है ये सीट


पाकिस्तान के खैबर-पख्तूनख्वा प्रांत की विधानसभा में जमीयत उलेमा-ए-इस्लाम-एफ (जेयूआई-एफ) को आवंटित अल्पसंख्यक सीट पर एक सिख नेता को चुना गया है. प्रांतीय निर्वाचन आयोग ने गुरुवार (17 जुलाई 2025) को यह घोषणा की. आयोग ने कहा कि जेयूआई-एफ उम्मीदवार गुरपाल सिंह अल्पसंख्यकों के लिए आरक्षित सीट पर निर्विरोध निर्वाचित हुए, जो अल्पसंख्यक सिख समुदाय के लिए एक महत्वपूर्ण उपलब्धि है.

सिंह खैबर जिले के बारा में मलिक दीन खेल जनजाति से ताल्लुक रखते हैं. अवामी नेशनल पार्टी (एएनपी) की शाहिदा वहीद प्रांतीय विधानसभा में महिलाओं के लिए आरक्षित सीट पर ड्रॉ के जरिये चुनी गईं. पाकिस्तान निर्वाचन आयोग के निर्देश पर पाकिस्तान मुस्लिम लीग-नवाज (पीएमएल-एन) और जेयूआई-एफ के बीच एक आरक्षित अल्पसंख्यक सीट तथा एएनपी और पाकिस्तान तहरीक-ए-इंसाफ (पीटीआई) के बीच एक आरक्षित महिला सीट के आवंटन के लिए ड्रॉ की प्रक्रिया आयोजित की गई थी.

आरक्षित अल्पसंख्यक सीट जेयूआई-एफ को दे दी गई
कार्यवाही के दौरान, पीएमएल-एन प्रतिनिधिमंडल ने औपचारिक रूप से अपने उम्मीदवार गोरसरन लाल को जेयूआई-एफ उम्मीदवार सिंह के पक्ष में वापस ले लिया. नतीजतन, आरक्षित अल्पसंख्यक सीट जेयूआई-एफ को दे दी गई, जिससे उन्हें प्रांतीय विधानसभा में एक अतिरिक्त सीट मिल गई. इसी तरह, महिलाओं के लिए आरक्षित सीट के आवंटन के वास्ते एएनपी और पीटीआई के बीच ड्रॉ हुआ. परिणामों में शाहिदा को सफल घोषित किया गया.

पाकिस्तान निर्वाचन आयोग
पाकिस्तान में राजनीतिक दलों को महिलाओं और अल्पसंख्यकों के लिए आरक्षित सीटें विधानसभाओं में उनके संख्या बल के आधार पर आनुपातिक रूप से प्रदान की जाती हैं. पाकिस्तान निर्वाचन आयोग ने मंगलवार को खैबर-पख्तूनख्वा प्रांतीय विधानसभा में आरक्षित सीटों के आवंटन के संबंध में अपने फैसले की घोषणा की थी. जेल में बंद पूर्व प्रधानमंत्री इमरान खान के नेतृत्व वाली ‘पीटीआई’ ने पिछले साल के चुनावों के बाद खैबर-पख्तूनख्वा प्रांत में सरकार बनाई थी.

सिख समुदाय की स्थिति और आगे की राह
पाकिस्तान में सिख समुदाय मुख्यतः पंजाब और खैबर-पख्तूनख्वा में बसा हुआ है. अक्सर धार्मिक स्थलों और सामाजिक अधिकारों की सुरक्षा को लेकर चर्चा में रहता है. गुरपाल सिंह का निर्वाचन इस दिशा में एक सकारात्मक संकेत है. अब देखना यह होगा कि वे विधानसभा में अल्पसंख्यक समुदायों के अधिकारों के लिए किस तरह से आवाज उठाते हैं.

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