सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार (30 जुलाई, 2025) को टीचर्स के रिटायरमेंट मामले में कलकत्ता हाईकोर्ट के 2023 के एक आदेश को खारिज कर दिया. हाईकोर्ट ने आदेश में पश्चिम बंगाल सरकार के इस रुख को बरकरार रखा था कि किसी शिक्षक के रिटायरमेंट की आयु इसलिए नहीं बढ़ाई जा सकती, क्योंकि उसने राज्य के किसी विश्वविद्यालय में 10 साल तक लगातार टीचिंग की शर्त पूरी नहीं की है.
पीटीआई की रिपोर्ट के अनुसार सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि जब कोई कर्मचारी दशकों तक सेवा कर चुका हो और रिटायरमेंट के करीब हो, तब उसे सिर्फ इस आधार पर अलग-अलग वर्गों में बांटना कि उसने पढ़ाने का अनुभव पश्चिम बंगाल के विश्वविद्यालय से लिया है या किसी और राज्य से, इसका न तो कोई तार्किक संबंध है और न ही कोई साफ-साफ उद्देश्य दिखता है.
जस्टिस पी एस नरसिम्हा और जस्टिस मनोज मिश्रा की बेंच ने कहा कि फरवरी 2021 की अधिसूचना में रिटायरमेंट की आयु 60 से बढ़ाकर 65 वर्ष करने का मकसद पश्चिम बंगाल के बाहर के विश्वविद्यालयों से अनुभव प्राप्त कर्मचारियों को इससे बाहर करना नहीं था. बेंच ने कहा है कि अधिसूचना के पाठ, संदर्भ और उद्देश्य से पता चलता है कि इसका मकसद सिर्फ राज्य सरकार की ओर से वित्त पोषित और निजी संस्थानों के बीच अंतर करना था.
हाईकोर्ट की खंडपीठ के फैसले को चुनौती देने वाले कर्मचारी की अपील स्वीकार करते हुए बेंच ने कहा कि अपीलकर्ता कानूनी खर्च के तौर पर 50,000 रुपये पाने का हकदार है. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि जब ऐसे निर्णयों की न्यायिक समीक्षा में कड़ी पड़ताल की जाती है, तो दुर्भाग्यवश वे संकीर्णता के रूप में सामने आते हैं, तथा उनमें भाईचारे के हमारे संकल्प को कमजोर करने की संभावना होती है.
बेंच ने कहा कि इस तरह के कार्यकारी निर्णय छोटे या साधारण गलतियों वाले लगते हैं, लेकिन इनके दूरगामी परिणाम होते हैं. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि भाईचारे का सिद्धांत खुद सामने नहीं आता, बल्कि इसे पहचानना और बनाए रखना संवैधानिक अदालतों की जिम्मेदारी होती है. कोर्ट ने यह भी कहा कि अगर यह भावना प्रशासन के किसी छोटे से हिस्से में भी कमजोर होती है, तो अदालत का कर्तव्य है कि उसे फिर से मजबूत करे, ताकि देश की एकता और अखंडता बनी रहे.
सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि अपीलकर्ता बर्दवान विश्वविद्यालय का एक नियमित कर्मचारी था, जो 2007 में विश्वविद्यालय में नियुक्त हुआ था और 2021 तक निर्बाध रूप से सेवा में रहा. बेंच ने कहा कि 14 साल से अधिक की सेवा देने के बाद, पश्चिम बंगाल सरकार ने फरवरी 2021 में एक ज्ञापन जारी कर सेवानिवृत्ति की आयु 60 वर्ष से बढ़ाकर 65 वर्ष कर दी.
बेंच ने कहा कि ज्ञापन में यह प्रावधान था कि रिटायरमेंट की बढ़ी हुई आयु का लाभ सिर्फ उन्हीं को मिलेगा जिन्होंने किसी राज्य की ओर से वित्त पोषित विश्वविद्यालय या कॉलेज में न्यूनतम 10 साल का निरंतर शिक्षण अनुभव प्राप्त किया हो.
इसमें कहा गया है कि अपीलकर्ता की ओर से ज्ञापन का लाभ लेने का दावा करते हुए विश्वविद्यालय के कुलपति को अभ्यावेदन दिए जाने के बाद, विश्वविद्यालय ने सूचित किया कि वह 31 अगस्त, 2023 को 60 साल की आयु प्राप्त करने पर सेवानिवृत्त हो जाएंगे, क्योंकि उनके पास ‘पश्चिम बंगाल राज्य की ओर से वित्त पोषित विश्वविद्यालय या कॉलेज’ में शिक्षण का कोई अनुभव नहीं है. इससे व्यथित होकर उन्होंने हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया.
हाईकोर्ट की सिंगल जज की बेंच ने उनकी याचिका स्वीकार कर ली और कहा कि वह ज्ञापन के दायरे में आते हैं और 65 वर्ष की आयु प्राप्त करने पर सेवानिवृत्त हो जाएंगे. बाद में, राज्य और विश्वविद्यालय ने सिंगल बेंच के आदेश को चुनौती देते हुए अलग-अलग अपील दायर की. खंडपीठ ने अपील स्वीकार कर ली और एकल न्यायाधीश के आदेश को रद्द कर दिया.