प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने झारखंड के गुमला जिले के पूर्व नक्सलियों के उल्लेखनीय परिवर्तन की रविवार (27 जुलाई, 2025) को प्रशंसा की, जिन्होंने हिंसा को छोड़कर मछली पालन का रास्ता अपना लिया है. मोदी ने इसे इस बात का प्रमाण बताया कि ‘कभी-कभी सबसे बड़ा उजाला वहीं से फूटता है, जहां अंधेरे ने सबसे ज्यादा डेरा जमाया हो.’
पीएम मोदी ने अपने मासिक रेडियो कार्यक्रम ‘मन की बात’ के 124वें संस्करण में पूर्व नक्सली ओम प्रकाश साहू की प्रेरक कहानी सुनायी, जो हिंसा का रास्ता छोड़कर एक सफल मछली पालक और कभी नक्सलवाद से प्रभावित रहे बसिया ब्लॉक में बदलाव के उत्प्रेरक बने.
माओवादी हिंसा के लिए चर्चित था इलाका
उन्होंने कहा, ‘कभी-कभी सबसे बड़ा उजाला वहीं से फूटता है, जहां अंधेरे ने सबसे ज्यादा डेरा जमाया हो. ऐसा ही एक उदाहरण है झारखंड के गुमला जिले का.’ प्रधानमंत्री ने कहा, ‘एक समय था, जब ये इलाका माओवादी हिंसा के लिए जाना जाता था और बसिया ब्लॉक के गांव वीरान हो रहे थे. लोग डर के साये में जीते थे, रोजगार की कोई संभावना नहीं थी, जमीनें खाली पड़ी थीं और नौजवान पलायन कर रहे थे, लेकिन फिर बदलाव की एक बहुत ही शांत और धैर्य से भरी शुरुआत हुई.’
उन्होंने कहा कि ओमप्रकाश साहू नाम के एक युवक ने हिंसा का रास्ता छोड़ दिया और मछली पालन शुरू किया. उन्होंने कहा कि साहू ने फिर अपने जैसे कई साथियों को भी इसके लिए प्रेरित किया और उनके इस प्रयास का असर भी हुआ. उन्होंने कहा, ‘जो पहले बंदूक थामे हुए थे, अब मछली पकड़ने वाला जाल थाम चुके हैं.’
प्रशिक्षण के बाद सरकार ने तालाब बनाने में की मदद
उन्होंने कहा कि शुरुआत में विरोध और धमकियां मिलने के बावजूद साहू ने हौंसला नहीं छोड़ा. पीएम ने कहा कि ‘प्रधानमंत्री मत्स्य संपदा योजना’ (पीएमएमएसवाई) की शुरुआत हुई तो साहू को नयी ताकत मिली. उन्होंने कहा कि सरकार से प्रशिक्षण मिला और तालाब बनाने में मदद भी मिली.
प्रधानमंत्री ने कहा कि इस पहल से गुमला में मत्स्य क्रांति का सूत्रपात हो गया है और आज बसिया ब्लॉक के 150 से ज्यादा परिवार मछली पालन से जुड़ चुके हैं. उन्होंने कहा कि कई तो ऐसे लोग हैं, जो कभी नक्सली संगठन में थे, अब वे गांव में ही सम्मान से जीवन जी रहे हैं और दूसरों को रोजगार दे रहे हैं.
मत्स्य पालन पहल आर्थिक सशक्तिकरण के खोल रही रास्ते
मोदी ने कहा, ‘गुमला की यह यात्रा हमें सिखाती है कि अगर रास्ता सही हो और मन में भरोसा हो तो सबसे कठिन परिस्थितियों में भी विकास का दीप जल सकता है.’ प्रधानमंत्री ने ‘पीटीआई’ की खबर का हवाला दिया, जिसमें बताया गया था कि किस प्रकार मत्स्य पालन पहल झारखंड में पुनर्वास और आर्थिक सशक्तिकरण के लिए नये रास्ते बना रही है.
साहू के अलावा, ‘पीटीआई’ की खबर में पूर्व नक्सली ज्योति लकड़ा और ईश्वर गोप की परिवर्तनकारी कहानियों का भी उल्लेख किया गया था. ज्योति लकड़ा (41) ने 2002 में उग्रवाद का रास्ता छोड़ दिया और अब वे मछली चारा का उत्पादन करने वाली एक मिल चलाते हैं, जिसने पिछले साल पीएमएमएसवाई योजना के तहत 8,00,000 रुपये का शुद्ध लाभ कमाया.
स्थानीय स्तर पर किया मिल स्थापित
लकड़ा को बसिया ब्लॉक में अपनी मिल स्थापित करने के लिए 18 लाख रुपये मिले थे. लकड़ा ने कहा, ‘गांव वालों को मछली का चारा खरीदने के लिए 150 किलोमीटर दूर जाना पड़ता था. इसलिए मैंने स्थानीय स्तर पर एक मिल स्थापित करने का फैसला किया.’
पूर्व नक्सली ईश्वर गोप (42) बाद में माओवाद-विरोधी शांति सेना समूह में शामिल हो गए. गोप ने एक सरकारी तालाब 1,100 रुपये में तीन साल के पट्टे पर लिया और उससे सालाना 2,50,000 रुपये मूल्य की आठ क्विंटल मछलियां पकड़ते हैं.
मछली पालन से हो रहा मुनाफा
गोप ने कहा, ‘खर्चों के बाद मुझे 1,20,000 रुपये का मुनाफा होता है. गोप ने कहा कि मछली पालन उन्हें अपनी 25 एकड़ जमीन पर खेती करने से ज़्यादा मुनाफा देता है. उनका यह बदलाव उग्रवाद से उग्रवाद-विरोधी और फिर शांतिपूर्ण आजीविका की ओर एक पूर्ण वैचारिक बदलाव का प्रतीक है. मई 2025 में गुमला जिले को रांची जिले के साथ केंद्रीय गृह मंत्रालय की नक्सल प्रभावित क्षेत्रों की सूची से हटा दिया गया, जिससे इस क्षेत्र में वाम उग्रवाद में कमी आई.
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