बेशकीमती खजाना खोजने निकले चीन-रूस, समुद्री मिशन ने मचाई खलबली! अमेरिका को हुई टेंशन

बेशकीमती खजाना खोजने निकले चीन-रूस, समुद्री मिशन ने मचाई खलबली! अमेरिका को हुई टेंशन


चीन और रूस ने करीब 5 साल के बाद फिर से संयुक्त समुद्री अभियान की शुरुआत की है. व्लादिवोस्तोक बंदरगाह से रवाना हुए नए अभियान का नेतृत्व अनुसंधान पोत ‘एकेडमिक एम.ए. लावरेंटयेव’ कर रहा है. इसमें शामिल 25 वैज्ञानिकों की टीम लगभग 45 दिनों तक गहरे समुद्र में पर्यावरण, पारिस्थितिकी और जलवायु के अध्ययन में लगेगी. इस दौरान दोनों देश आर्टिक रीजन में कई तरह की खोज करेंगे.

यह मिशन कोविड-19 के बाद दोनों देशों के बीच हुआ पहला प्रमुख समुद्री मिशन है और इसे चीन के प्राकृतिक संसाधन मंत्रालय के अधीन FIO (First Institute of Oceanography) की तरफ से ऑपरेट किया जा रहा है. सरकारी दावों के अनुसार, इस अभियान का मकसद गहरे समुद्री इकॉ-सिस्टम को समझना है. जलवायु परिवर्तन के प्रभावों का अध्ययन करना है. समुद्री संसाधनों का संरक्षण और  प्राकृतिक आपदाओं के पूर्वानुमान के लिए डाटा इकट्ठा करना है, लेकिन विशेषज्ञों की नजर में, यह अभियान इतना सीधा-सादा नहीं है. कई एक्सपर्ट्स का मानना है कि चीन और रूस का असली मकसद दुर्लभ खनिज और प्राकृतिक संसाधनों की खोज और उत्तरी समुद्री मार्ग पर नियंत्रण हासिल करना है. इसका फायदा भविष्य के वैश्विक व्यापार मार्गों में प्रभुत्व स्थापित करने में मदद के तौर पर मिलेगा.

खोज के केंद्र में कौन-से क्षेत्र?
इस बार मिशन का मुख्य क्षेत्र है बेरिंग सागर और उत्तर-पश्चिमी प्रशांत महासागर शामिल है. यह क्षेत्र भूवैज्ञानिक दृष्टि से समृद्ध माना जाता है और यहां समुद्र तल पर मैंगनीज नोड्यूल्स, कोबाल्ट और दुर्लभ अर्थ मेटल पाई जाती हैं. साथ ही, वैज्ञानिक यह भी जानने की कोशिश करेंगे कि पिछले 1.26 लाख सालों में इस क्षेत्र ने जलवायु परिवर्तन से क्या अनुभव किया.

चीन-रूस का बढ़ता समुद्री सहयोग
यह पहला मौका नहीं है जब दोनों देश समुद्री विज्ञान में साझेदारी कर रहे हैं, जो इस प्रकार है:

2009: चिंगदाओ, चीन में संयुक्त समुद्री  मिशन

2017: संयुक्त समुद्रविज्ञान अनुसंधान केंद्र की स्थापना

2023: उत्तरी समुद्री मार्ग के सहयोग हेतु विशेष उप-समिति का गठन

उत्तरी समुद्री मार्ग (Northern Sea Route) जो रूस के आर्कटिक तट से 5,600 किलोमीटर तक फैला है, भविष्य के ग्लोबल मार्केट का हॉटस्पॉट बन सकता है. जलवायु परिवर्तन के चलते आर्कटिक की बर्फ तेजी से पिघल रही है, जिससे यह रूट पारंपरिक स्वेज नहर की तुलना में छोटा और सस्ता हो गया है. चीन और रूस इस मार्ग पर पश्चिमी देशों की निर्भरता खत्म करने और अपने-अपने व्यापारिक रास्तों को स्वतंत्र और सुरक्षित बनाने की कोशिश कर रहे हैं. इस वजह से अमेरिका टेंशन में नजर आ रहा है.

ये भी पढ़ें: जर्मनी में दर्दनाक ट्रेन हादसा, पटरी से उतरे डिब्बे, 3 की मौत और कई गंभीर रूप से घायल



Source link

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *