Malaysia Hindu Woman Won Case: मलेशियाई अदालत ने एक ऐतिहासिक फैसला सुनाते हुए कहा कि माता-पिता की सहमति के बिना बच्चों का धर्म परिवर्तन असंवैधानिक है. यह मामला लोह सिउ होंग नाम की एक हिंदू महिला से जुड़ा हुआ है. उसने अपने दो बच्चों के इस्लाम में धर्मांतरण के खिलाफ न्यायालय में चुनौती दी थी, जो उसकी सहमति के बिना किया गया था. कोर्ट ने उस समीक्षा याचिका को भी खारिज कर दिया, जिसमें दो बच्चों के इस्लाम में धर्मांतरण को वैध करार देने की मांग की गई थी.
धर्मांतरण से जुड़ा केस लोह सिउ होंग की ओर से 2016 में दाखिल की गई एक याचिका से शुरू हुआ था, जिसमें उन्होंने अपने तीन बच्चों की कस्टडी और धर्मांतरण को चुनौती दी थी. यह धर्मांतरण उनके पूर्व पति की तरफ से उस समय किया गया था, जब वे बच्चों की कस्टडी को लेकर केस लड़ रहे थे. लोह का कहना था कि उन्हें इस्लाम में धर्मांतरण की कोई जानकारी नहीं दी गई थी. यह धर्म परिवर्तन बच्चों की इच्छा या सहमति के बिना हुआ था.
सालों से जारी रखी कानूनी जंग
2022 में लोह के खिलाफ फैसला सुनाया गया, लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी और मामले को फिर संघीय अदालत तक ले गईं. 2024 में संघीय अदालत ने एक अहम फैसला देते हुए धर्मांतरण को अमान्य घोषित किया और कहा कि बिना माता-पिता की सहमति के धर्म परिवर्तन असंवैधानिक है और इससे एकतरफा धर्मांतरण की प्रवृत्ति को बढ़ावा मिलेगा.
क्या है नियम 137 जिसके तहत समीक्षा दायर की गई?
पर्लिस राज्य ने फैसले के खिलाफ रिव्यू पिटिशन यानी समीक्षा याचिका दाखिल की, जो मलेशियाई कानून के नियम 137 के तहत होती है. यह एक दुर्लभ प्रक्रिया है, जो अदालत को अपने ही फैसले पर पुनर्विचार करने की अनुमति देती है, खासकर जब न्यायिक प्रक्रिया के दुरुपयोग या अन्याय की आशंका हो.
सामाजिक और सांस्कृतिक महत्व
इस फैसले का न केवल कानूनी, बल्कि सांस्कृतिक और धार्मिक दृष्टिकोण से भी गहरा प्रभाव पड़ेगा. मलेशिया में धार्मिक अल्पसंख्यकों, विशेषकर हिंदुओं और अन्य गैर-मुस्लिम समुदायों के लिए यह एक बड़ा समर्थन माना जा रहा है. यह फैसला यह भी स्पष्ट करता है कि मलेशिया के संवैधानिक ढांचे में अब भी व्यक्तिगत स्वतंत्रता और पारिवारिक अधिकारों की रक्षा संभव है, बशर्ते उसे कानूनी रूप से लड़ा जाए.