SC On Places Of Worship Act: भारत के मुख्य न्यायाधीश (CJI) संजीव खन्ना और न्यायमूर्ति संजय कुमार की पीठ ने प्रोटेक्शन ऑफ प्लेसेस ऑफ वर्शिप एक्ट, 1991 को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई की. अदालत ने पिछली सुनवाई में दिए गए स्टे को बरकरार रखा और नई याचिकाओं पर नोटिस जारी करने से इनकार कर दिया. हालांकि, याचिकाकर्ताओं को आवेदन दाखिल करने की अनुमति दी गई.
इस बीच जमीयत उलमा-ए-हिंद के अध्यक्ष मौलाना अरशद मदनी ने आज की कानूनी कार्रवाई पर कहा कि स्टे को बरकरार रखने का निर्णय बहुत महत्वपूर्ण है, क्योंकि इससे सांप्रदायिक ताकतों की उकसाने वाली गतिविधियों पर रोक लगी रहेगी. उन्होंने कहा कि यह एक अत्यंत संवेदनशील और महत्वपूर्ण मामला है, क्योंकि इस कानून के बने रहने से ही देश की एकता और भाईचारा सुरक्षित रह सकता है.
‘बाबरी मामले में फैसले को भारी मन से किया था स्वीकार’
उन्होंने आगे कहा कि सांप्रदायिक ताकतों ने एक बार फिर अपने उग्र इरादों को उजागर कर दिया है, और निचली अदालतों द्वारा इस तरह के मामलों में दिए गए गैर-जिम्मेदाराना फैसलों से स्थिति और भी खराब हो गई है. मौलाना मदनी ने कहा कि बाबरी मस्जिद मामले में आए फैसले को हमने भारी मन से स्वीकार किया था, यह सोचकर कि अब मंदिर-मस्जिद का कोई विवाद नहीं रहेगा और देश में शांति एवं भाईचारे का माहौल बनेगा, लेकिन हमारा यह विश्वास गलत साबित हुआ.
सत्ताधारी दलों की मौन स्वीकृति से सांप्रदायिक ताकतों को फिर से सक्रिय होने का अवसर मिल गया और उन्होंने संविधान और कानून की सर्वोच्चता को दरकिनार करते हुए कई स्थानों पर हमारी इबादतगाहों को निशाना बना डाला. मौलाना मदनी ने कहा कि इस गंभीर स्थिति ने देश भर के सभी न्यायप्रिय नागरिकों को गहरी चिंता में डाल दिया है, लेकिन सत्ता में बैठे लोग ऐसे चुप हैं जैसे उनके लिए यह कोई मुद्दा ही नहीं है.
केंद्र सरकार का नहीं आया जवाब
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि पहले सभी याचिकाओं के दाखिले की प्रक्रिया पूरी होनी चाहिए, उसके बाद केंद्र सरकार उन पर एक साथ हलफनामा दाखिल करेगी. अदालत ने साफ किया कि किसी भी मुद्दे की एक सीमा होती है, जिसे अदालत तय करेगी. इसलिए, नई याचिकाओं पर नोटिस नहीं दिया जाएगा.अब इस मामले की सुनवाई अप्रैल के पहले सप्ताह में तीन सदस्यीय पीठ करेगी.
सुप्रीम कोर्ट के निर्देश के बावजूद केंद्र सरकार ने अभी तक अपना हलफनामा दाखिल नहीं किया. इस पर याचिकाकर्ताओं ने नाराजगी व्यक्त की. अदालत ने कहा कि सभी याचिकाओं को पहले एक साथ दाखिल किया जाए, फिर सरकार एक समग्र हलफनामा प्रस्तुत करे
जमीयत उलमा-ए-हिंद का रूख
एडवोकेट ऑन रिकॉर्ड एजाज मकबूल ने सभी याचिकाओं का सारांश प्रस्तुत किया, जिसे CJI ने स्वीकार किया. मौलाना अरशद मदनी ने अदालत के फैसले पर संतोष व्यक्त किया और कहा कि स्टे बनाए रखने का निर्णय महत्वपूर्ण है, क्योंकि इससे सांप्रदायिक उकसावे पर रोक लगी रहेगी. उन्होंने चिंता व्यक्त की कि अगर यह कानून हटा दिया गया, तो किसी भी धार्मिक स्थल की सुरक्षा सुनिश्चित नहीं रह पाएगी.
क्या है यह मामला?
प्रोटेक्शन ऑफ प्लेसेस ऑफ वर्शिप एक्ट, 1991 के तहत 15 अगस्त 1947 के बाद किसी भी धार्मिक स्थल के स्वरूप में बदलाव नहीं किया जा सकता. इस कानून को चुनौती देते हुए याचिकाकर्ताओं ने इसे असंवैधानिक करार देने की मांग की है. जमीयत उलमा-ए-हिंद और अन्य मुस्लिम संगठनों ने कानून की रक्षा के लिए याचिकाएं दाखिल की हैं.
सांप्रदायिक तनाव और सरकार की भूमिका
मौलाना अरशद मदनी ने आरोप लगाया कि सरकार की निष्क्रियता से सांप्रदायिक ताकतों को बढ़ावा मिला है. उन्होंने कहा कि बाबरी मस्जिद विवाद को खत्म मानकर शांति की उम्मीद की गई थी, लेकिन मंदिर-मस्जिद विवाद फिर से उठाए जा रहे हैं.