मालेगांव ब्लास्ट मामले में स्पेशल एनआईए कोर्ट ने भारतीय जनता पार्टी की पूर्व सांसद साध्वी प्रज्ञा ठाकुर को बरी करते हुए कहा कि वह हमले से दो साल पहले ही संन्यासी बन गई थीं. उन्होंने कहा कि अभियोजन पक्ष उनके खिलाफ ठोस सबूत पेश करने में असफल रहा और वो यह भी साबित नहीं कर सका कि जिस बाइक पर बम रखा गया था वह उनकी थी.
बार एंड बेंच की रिपोर्ट के अनुसार प्रज्ञा ठाकुर और लेफ्टिनेंट कर्नल प्रसाद पुरोहित समेत सभी सात आरोपियों को कोर्ट ने गुरुवार (31 जुलाई, 2025) को बरी कर दिया है. कोर्ट ने कहा कि अभियोजन पक्ष आरोपियों के खिलाफ ठोस सबूत पेश करने में असफल रहा इसलिए आरोपियों को शक के आधार पर दोषी नहीं ठहराया जा सकता है.
एनआईए के जज जस्टिस एके लाहोती ने आरोपियों को बरी करने का फैसला सुनाते हुए यह भी कहा कि आतंकवाद का कोई धर्म नहीं होता, लेकिन दोषसिद्धि नैतिक आधार पर नहीं हो सकती है. कोर्ट ने कहा कि जिस टू व्हीलर पर बम रखे जाने का अभियोजन पक्ष दावा कर रहा था और आरोप लगाया कि वह बाइक प्रज्ञा ठाकुर की थी, उसके चेसिस का सीरियल नंबर फॉरेसिंक टीम पूरी तरह से बरामद नहीं कर सकी. इस तरह अभियोजन पक्ष यह साबित नहीं कर सका कि वह बाइक प्रज्ञा ठाकुर की थी. चेसिस वाहन की मूल बॉडी होती है, जिस पर पार्ट्स अटैच किए जाते हैं.
कोर्ट ने कहा कि प्रज्ञा ठाकुर संन्यासी बन चुकी हैं और उन्होंने मालेगांव बम विस्फोट से दो साल पहले ही सभी भौतिक चीजों को त्याग दिया था.
सुनवाई के दौरान कोर्ट ने अभियोजन पक्ष की इस दलील को भी मानने से इनकार कर दिया कि विस्फोट की साजिश इन सात आरोपियों की थी. कोर्ट ने अभियोजन पक्ष के इस दावे को तो स्वीकार किया कि ब्लास्ट में छह लोगों की जान गई, लेकिन इस दलील को स्वीकार नहीं किया कि हादसे में 101 लोग घायल हुए थे. कोर्ट ने 95 लोगों के जख्मी होने की बात स्वीकार की क्योंकि कोर्ट में दिए गए कुछ मेडिकल सर्टिफिकेट्स में हेराफेरी की गई थी.
29 सितंबर 2008 को मुंबई से करीब 200 किलोमीटर दूर मालेगांव शहर में एक मस्जिद के पास एक मोटरसाइकिल में लगाए गए विस्फोटक उपकरण में विस्फोट होने से छह लोगों की मौत हो गई थी और कई लोग घायल हो गए थे. इस मामले के आरोपियों में प्रज्ञा ठाकुर, पुरोहित, मेजर (रिटायर्ड) रमेश उपाध्याय, अजय राहिरकर, सुधाकर द्विवेदी, सुधाकर चतुर्वेदी और समीर कुलकर्णी शामिल थे.