मुगलकाल में कश्मीरी और बंगाली लड़कियों पर रहती थी बादशाह की नजर! जानें क्यों

मुगलकाल में कश्मीरी और बंगाली लड़कियों पर रहती थी बादशाह की नजर! जानें क्यों


भारतीय इतिहास में मुगल काल केवल किलों और स्मारकों के लिए ही नहीं, बल्कि अपनी विलासिता और भव्य हरम के लिए भी जाना जाता है. मुगल बादशाहों का हरम केवल स्त्रियों का समूह नहीं था, बल्कि वह भोग-विलास, संगीत और शक्ति का केंद्र था. इतिहासकार किशोरी शरण लाल ने अपनी प्रसिद्ध किताब The Mughal Harem में जिक्र किया है कि हरम में बादशाह की पत्नियों के साथ–साथ उपपत्नियां, दासियां और नर्तकियां भी रहती थीं. हरम की व्यवस्था मुख्य पत्नियों के हाथ में होती थी, लेकिन जिस महिला पर बादशाह की नजर ठहरती थी, उसका प्रभाव दरबार और प्रशासन तक बढ़ जाता था.

मुगल दरबार में औरतों का चयन अक्सर खास मेलों से किया जाता था, जो नौरोज और खुशरोज का मेला होता था. इन मेलों में देशभर की सुंदर और कला प्रेमी स्त्रियां हिस्सा लेती थीं. बादशाह अपनी पसंद की महिलाओं को चुनकर उन्हें हरम में शामिल कर लेते थे. ये मेले केवल उत्सव नहीं, बल्कि राजनीतिक-सामाजिक महत्व भी रखते थे. कई बार दरबारियों और अमीरों ने खूबसूरत स्त्रियों को बादशाह को पेश कर अपनी राजनीतिक पकड़ और प्रभाव बढ़ाने का काम करते थे.

बंगाली और कश्मीरी महिलाएं
किशोरी शरण लाल लिखते हैं कि मुगल बादशाहों की खास पसंद बंगाली और कश्मीरी महिलाएं थीं. बंगाली महिलाएं अपनी सुंदरता, संगीत और नृत्य-कला के लिए प्रसिद्ध थी. वहीं कश्मीरी महिलाएं रूप, गुण और आकर्षण के कारण विशेष रूप से जानी जाती थीं. बादशाह अक्सर इन दोनों क्षेत्रों की महिलाओं को अपने हरम में शामिल करते थे. इससे यह भी स्पष्ट होता है कि मुगल कालीन संस्कृति में कला, संगीत और सौंदर्य का कितना महत्व था.

हरम विलासिता का प्रतीक
मुगल हरम केवल स्त्रियों का निवास स्थान नहीं था, बल्कि यह शाही जीवन के भोग-विलास का केंद्र था. यहां शराब, संगीत और नृत्य का माहौल हमेशा रहता था. इस्लाम में शराब हराम मानी जाती है, लेकिन अधिकतर मुगल बादशाह इसका भरपूर सेवन करते थे. पत्नियों की तुलना में उपपत्नियां और दासियां अधिक प्रभावशाली होती थीं. हरम की महिलाएं न केवल सौंदर्य का प्रतीक थीं बल्कि वे दरबार की राजनीतिक काम-काजऔर शक्ति-संतुलन में भी अहम भूमिका निभाती थीं.

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