सुप्रीम कोर्ट मथुरा में श्री बांके बिहारी मंदिर कॉरिडोर को लेकर दाखिल याचिका पर सुनवाई के लिए तैयार हो गया है. याचिका में कॉरिडोर के लिए उत्तर प्रदेश सरकार की प्रस्तावित पुनर्विकास योजना को मंजूरी देने संबंधी कोर्ट के आदेश में संशोधन का अनुरोध किया गया है. गुरुवार (22 मई, 2025) को मुख्य न्यायाधीश भूषण रामाकृष्ण गवई (CJI BR Gavai) और जस्टिस ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह की बेंच ने याचिका पर सुनवाई के लिए सहमति जताई.
मथुरा के रहने वाले देवेंद्र नाथ गोस्वामी की ओर से सीनियर एडवोकेट अमित आनंद तिवारी ने सुप्रीम कोर्ट में दलील दी, जिसके बाद कोर्ट याचिका को सुनवाई के लिए सूचीबद्ध करने के लिए सहमत हो गया. मुख् न्यायाधीश बी आर गवई ने कहा, ‘हम इसे सूचीबद्ध करेंगे.’
सुप्रीम कोर्ट ने 15 मई को मथुरा में श्री बांके बिहारी मंदिर कॉरिडोर को विकसित करने की उत्तर प्रदेश सरकार की 500 करोड़ रुपये की योजना का मार्ग प्रशस्त कर दिया था. कोर्ट ने उत्तर प्रदेश सरकार की उस याचिका को स्वीकार कर लिया था जिसमें कहा गया था कि श्री बांके बिहारी मंदिर की निधि का इस्तेमाल सिर्फ मंदिर के आसपास पांच एकड़ भूमि खरीदने और भीड़ को नियंत्रित करने के लिए बनाए गए निरुद्ध क्षेत्र (होल्डिंग एरिया) बनाने के लिए किया जाए.
देवेंद्र नाथ गोस्वामी ने 19 मई को एक याचिका दायर की और कहा कि प्रस्तावित पुनर्विकास परियोजना का कार्यान्वयन अव्यावहारिक है और मंदिर के कामकाज से ऐतिहासिक और परिचालन रूप से जुड़े लोगों की भागीदारी के बिना मंदिर परिसर के पुनर्विकास का कोई भी प्रयास प्रशासनिक अराजकता का कारण बन सकता है.
याचिका में दावा किया गया है, ‘इस तरह के पुनर्विकास से मंदिर और उसके आसपास के पारिस्थितिकी तंत्र के धार्मिक और सांस्कृतिक चरित्र के बदलने की आशंका है, जिसका गहरा ऐतिहासिक और भक्ति संबंधी महत्व है.’ देवेंद्र नाथ गोस्वामी की ओर से एडवोकेट आशुतोष झा ने दायर दाखिल की थी, जिसमें कहा गया है कि उनके मुवक्किल मंदिर के संस्थापक स्वामी हरिदास गोस्वामी के वंशज हैं और उनका परिवार पिछले 500 सालों से पवित्र मंदिर का प्रबंधन कर रहा है.
याचिकाकर्ता ने कहा कि वह मंदिर के दैनिक धार्मिक और प्रशासनिक मामलों के प्रबंधन में सक्रिय रूप से शामिल थे. सुप्रीम कोर्ट ने उत्तर प्रदेश सरकार की ओर से दायर एक जनहित याचिका पर इलाहाबाद हाईकोर्ट के आठ नवंबर, 2023 के उस आदेश को 15 मई को संशोधित किया था, जिसमें राज्य की महत्वाकांक्षी योजना को स्वीकार किया गया था, लेकिन राज्य को मंदिर की निधि का इस्तेमाल करने की अनुमति देने से इनकार कर दिया गया था.