यूपी के पीलीभीत में अपना जिला कार्यालय खाली करवाने के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट पहुंची समाजवादी पार्टी को कड़ी फटकार लगी. कोर्ट ने कहा कि सत्ता में रहते उसने धोखाधड़ी से सरकारी इमारत पर कब्जा किया था और तब नियमों को ताक पर रख दिया था. अब जब उसे खाली करवाया जा रहा है तो सारे नियम याद आ रहे हैं.
क्या है मामला?
2005 में राज्य में समाजवादी पार्टी की सरकार के रहते पीलीभीत नगर पालिका परिषद के एग्जीक्यूटिव इंजीनियर का आवास मामूली किराए पर समाजवादी पार्टी को दे दिया गया था. पार्टी ने इसे जिला कार्यालय बनाया. 12 नवंबर 2020 को नगर पालिका परिषद ने इस आवंटन को नियम विरुद्ध बताते हुए निरस्त कर दिया. इसके बावजूद पार्टी ने कब्जा नहीं छोड़ा. अब जगह को खाली करवाने की कार्रवाई शुरू कर दी गई है.
सुप्रीम कोर्ट ने और क्या कहा?
जस्टिस सूर्य कांत की अध्यक्षता वाली बेंच ने सुनवाई से मना करते हुए कहा कि पार्टी पीलीभीत के सिविल कोर्ट में अपनी बात रखे. समाजवादी पार्टी के लिए पेश वकील ने दलील दी कि पार्टी ने इमारत का पूरा किराया दिया है. इस पर कोर्ट ने कहा, ‘क्या आपने कभी सुना है कि शहर के बीच की सरकारी इमारत का किराया 115 रुपया है? आप चाहते हैं कि हम इस पर विश्वास कर लें?’ कोर्ट ने कहा कि इस मामले में जो हुआ है, उसे आवंटन के बजाय ‘धोखाधड़ी से कब्जा’ कहना सही होगा.
इलाहाबाद हाईकोर्ट के आदेश के खिलाफ अनुमति याचिका
बता दें कि जून में सुप्रीम कोर्ट ने समाजवादी पार्टी की ओर से इलाहाबाद हाईकोर्ट के उस आदेश के खिलाफ दायर एक और विशेष अनुमति याचिका खारिज कर दी थी, जिसमें पीलीभीत जिले के पार्टी अध्यक्ष को पीलीभीत स्थित पार्टी कार्यालय से पार्टी को बेदखल करने के विवाद के संबंध में आगे कोई रिट याचिका दायर करने से रोक दिया गया था. न्यायालय ने स्पष्ट किया कि समाजवादी पार्टी हाई कोर्ट का रुख कर सकती है.
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