राष्ट्रपति और राज्यपाल को विधेयकों पर फैसला लेने के लिए समय सीमा में बांधने के मसले पर सुप्रीम कोर्ट 19 अगस्त से सुनवाई करेगा. मंगलवार (29 जुलाई, 2025) को चीफ जस्टिस भूषण रामकृष्ण गवई (CJI BR Gavai) की अध्यक्षता वाली पांच जजों की संविधान पीठ ने इस बारे में राष्ट्रपति की तरफ से भेजे गए प्रेसिडेंशियल रेफरेंस पर सभी पक्षों को 12 अगस्त तक लिखित जवाब दाखिल करने को कहा है. 15 मई को राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने संविधान के अनुच्छेद 143 (1) के तहत प्रेसिडेंशियल रेफरेंस भेज कर सुप्रीम कोर्ट से 14 सवाल किए थे.
संविधान बेंच में सीजेआई बीआर गवई के अलावा जस्टिस सूर्यकांत, जस्टिस विक्रम नाथ, जस्टिस पीएस नरसिम्हा और जस्टिस अतुल एस.चंद्रुकर भी शामिल हैं. अप्रैल में सुप्रीम कोर्ट के दो जजों की बेंच ने कहा था कि राज्यपाल और राष्ट्रपति को विधेयकों पर एक तय समय सीमा के अंदर ही फैसला लेना चाहिए. अगर ऐसा नहीं होता तो कोर्ट दखल दे सकता है. इसी फैसले को लेकर राष्ट्रपति ने सुप्रीम कोर्ट से कानूनी सलाह मांगी है.
कोर्ट ने कहा कि दोनों पक्षों को बहस के लिए चार-चार दिनों का मौका मिलेगा और 10 सितंबर तक सुनवाई पूरी हो जाएगी. सुनवाई के पहले दिन केरल और तमिलनाडु समेत रेफरेंस को बिना विचार लौटा देने की दलील दे रहे पक्ष लगभग 1 घंटा अपनी बात रखेंगे. सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई में सुविधा के लिए दोनों पक्षों से एक-एक नोडल वकील नियुक्त किया. यह वकील अपने पक्ष के वकीलों से समन्वय स्थापित कर सुनवाई को व्यवस्थित रखने में कोर्ट की सहायता करेंगे.
बार एंड बेंच की रिपोर्ट के अनुसार सीनियर एडवोकेट कपिल सिब्बल ने कहा कि उनकी तरफ से मिशा रोहतगी नोडल वकील होंगी और केंद्र सरकार की तरफ से पेश हुए सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने बताया कि अमन मेहता उनकी तरफ से नोडल वकील होंगे.
कोर्ट ने कहा कि रेफरेंस का विरोध कर रहे पक्ष की दलीलें 19, 20, 21 और 26 अगस्त को सुनी जाएंगी और रेफरेंस का समर्थन कर रहे पक्ष को 20 अगस्त, 2, 3 और 9 सितंबर को मौका मिलेगा. संविधान के अनुच्छेद 143(1) के तहत राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू की ओर से दिए गए प्रेसिडेंशियल रेफरेंस पर निर्णय लेने के लिए पीठ का गठन किया गया था.
राष्ट्रपति मुर्मू के प्रेसिडेंशियल रेफरेंस में सुप्रीम कोर्ट के 8 अप्रैल के उस फैसले को चुनौती दी गई है, जिसमें विधानसभा से पारित विधेयकों पर राष्ट्रपति और राज्यपाल को तय समय सीमा में निर्णय लेने की बात कही गई है. सुप्रीम कोर्ट ने तमिलनाडु सरकार बनाम राज्यपाल मामले में 8 अप्रैल को यह आदेश दिया था. जस्टिस जेबी पारदीवाला और जस्टिस आर महादेवन की बेंच ने फैसला सुनाते हुए कहा था कि राज्यपाल को विधानसभा से पारित विधेयकों को अनिश्चितकाल के लिए रोकने का अधिकरा नहीं है.
उन्होंने कहा था कि राज्यपाल को तय समयसीमा के अंदर विधेयकों पर फैसला लेना होगा. वह विधेयकों को दोबारा विचार के लिए भेज सकते हैं, लेकिन अगर फिर से विधेयक पुराने स्वरूप में उनके पास आते हैं तो राज्यपाल के पास बिल मंजूरी को देने के अलावा कोई और विकल्प नहीं है. वह उसे राष्ट्रपति के पास भेजने के नाम पर लटकाए नहीं रख सकते हैं.
केरल सरकार ने भी विधेयकों पर दो साल तक कोई फैसला नहीं लिए जाने पर राज्यपाल के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में याचिकाएं दाखिल की थीं, लेकिन हाल ही में 25 जुलाई को राज्य सरकार ने तमिलनाडु सरकार बनाम राज्यपाल मामले में कोर्ट के फैसले का हवाला देते हुए याचिकाएं वापस ले ली थीं और कहा कि यह मुद्दा निरर्थक हो गया है. केरल सरकार ने राष्ट्रपति की ओर से भेजे गए प्रेसिडेंशियल रेफरेंस का विरोध किया है और कोर्ट से इसे बिना जवाब के लौटाने की मांग की है. उनका कहना है कि इसमें गंभीर खामियां हैं. केरल सरकार की तरफ से सीनियर एडवोकेट केके वेणुगोपाल कोर्ट में पेश हुए.
(निपुण सहगल के इनपुट के साथ)