Real Estate News: साल 2016 की नोट बंदी और 2017 की जीएसटी के झटके से निकला रियल एस्टेट सेक्टर 2020 में कोविड की मार के लिए बिल्कुल तैयार नहीं था. इसके बाद रियल एस्टेट सेक्टर में अभी तक की सबसे बड़ी गिरावट आई और इस कारण कई परियोजनाओं में निर्माण और विकास कार्य या तो धीमा हो गया या पूरी तरह से बंद हो गया था. लेकिन 2022-24 के दौरान कोविड की मार से उबरने वाले रियल एस्टेट सेक्टर में जबरदस्त वापसी की.
इस वापसी में कई ऐसी परियोजनाओं का भी बेड़ा पार हो गया जो वर्षों से बंद पड़ी थी और घर खरीदार इनमें दोबारा काम शुरू होना लगभग असम्भव मान रहे थे! यूनिटस की बढ़ती मांग और कीमतों में तेजी के कारण बहुत से बंद व अधूरी परियोजनाएं वित्तीय रूप से लाभकारी हो गई. आज हम प्रोमोटर्स द्वारा अपनाए गए उन मॉडल एक नजर डालेंगे जिससे वर्षों से बंद या अधूरे प्रोजेक्ट में फिर से निर्माण और विकास के काम शुरू हो गए;
1.रिवर्स इनसॉल्वेनसी के जरिए-
रियल एस्टेट सेक्टर में ऐसी परियोजनाएं बहुत सीमित है जो एनसीएलटी में जाने के बाद पूर्णता प्राप्त कर सकें. लेकिन ऐसे अपवाद भी है जहां प्रोमोटर द्वारा एनसीएलटी से परियोजना न केवल वापस लाई गई बल्कि पूरा करके ओसी प्राप्त की जा चुकी है. आरजी ग्रुप द्वारा अपनी कंपनी को एनसीएलटी की प्रक्रिया से रिवर्स इनसॉल्वेनसी द्वारा वापस लाया गया और आरजी लक्जरी होम्स को पूर्ण कराया गया और अब ओसी प्राप्त किया गया है.
आरजी ग्रुप के निदेशक हिमांशु गर्ग के अनुसार यह गौतम बुद्ध नगर में संभवतः केवल एक कंपनी है जो रिवर्स इनसॉल्वेनसी के जरिए अपने दोनों प्रोजेक्ट को एनसीएलटी से वापस लाए और पूरा करके कब्जा भी दिया है. ऐसा कंपनी के सकारात्मक दृष्टिकोण से ही संभव हो सका जो केवल और केवल परियोजना पूर्ण करने के उद्देश्य से काम कर रही थी. इसमें हमे अपने घर खरीदारों के अलावा सरकार की नीतियों का भी भरपूर सहयोग मिला. इससे हम न केवल परियोजना पूर्ण कर सके बल्कि 1,452 यूनिटस का ओसी प्राप्त कर ली है तथा अन्य 2 टावर के लिए ओसी अप्लाइ कर चुके है.
लेकिन असल समस्या फंड की कमी है जिसके समाधान से बंद पड़ी परियोजनाएं चल पड़ी है. क्रेडाई पश्चिमी यूपी के सचिव दिनेश गुप्ता का मानना है कि अकेले नोएडा और ग्रेटर नोएडा में फंड की कमी से कई अन्य रियल एस्टेट परियोजनाएं या तो अभी भी बंद पड़ी है या फिर एनसीएलटी में लंबित होती जा रही है. सेक्टर में फिलहाल फंड के सोर्स के अलावा कई अन्य पहल की जरूरत है जिससे रुकी हुई परियोजनाओं में पुनः निर्माण हेतु आवश्यक जरूरत उपलब्ध कराई जा सके.
2. प्रोमोटर कंपनी के नए प्रबंधन के जरिए-
कई परियोजनाएं फंड की कमी के साथ-साथ प्रभावी प्रबंधन के अभाव से भी प्रभावित होते है. ऐसे में परियोजना के प्रोमोटर्स द्वारा की जा रही गलतियों को दूर करने और नया फंड लाने की प्रक्रिया की जाती है जिससे परियोजना में निर्माण कार्य दोबारा शुरू हो सके. इस मॉडल पर डिलिजेन्ट बिल्डर्स द्वारा ग्रेटर नोएडा वेस्ट में ही 2.5 एकर में फैले अंतरिक्ष वैली नाम की परियोजना का पुनः निर्माण कराया जा रहा है.
डिलिजेन्ट बिल्डर्स के सीओओ ले.क. अश्वनी नागपाल (रिटायर्ड) के अनुसार पुरानी कंपनी में नए प्रबंधन द्वारा नए स्तर से फंड की आपूर्ति करके न केवल प्राधिकरण का बकाया चुकाया बल्कि परियोजना से जुड़े पुराने आवंटियों को रिफ़ंड भी दिया गया. नई कार्य योजना से नए लक्ष्य बने और ऊर्जा का संचार हुआ जिससे परियोजना पुनः प्रारंभ करना संभव हुआ. इस प्रक्रिया में हमें सरकार की सकरात्मक नीतियों और अमिताभ कांत कमेटी की सिफारिशों का साथ मिला जिससे आज हम उस स्तर पर आ चुके है जिससे घर खरीदारों को उनका घर देने के साथ हम परियोजना को पूरा करने की दिशा में बढ़ रहे है.
3. प्रोमोटर कंपनी का अधिग्रहण-
इस मॉडल के अन्तर्गत किसी नए रियल एस्टेट संस्थान द्वारा वर्षों से बंद पड़े प्रोजेक्ट की मुख्य रियल एस्टेट कंपनी का अधिग्रहण कर लिया जाता है. इस प्रक्रिया में शत प्रतिशत शेयर खरीदना अथवा हस्तांतरण या शत प्रतिशत ईक्विटी खरीदना शामिल होता है. इस प्रक्रिया से रेनॉक्स ग्रुप द्वारा निवास प्रोमोटर्स का अधिग्रहण करके रेनॉक्स थ्राइव परियोजना लॉन्च की गई.
रेनॉक्स ग्रुप के चेयरमैन शैलेन्द्र शर्मा के अनुसार प्रोमोटर संस्थान का अधिग्रहण ही सबसे सटीक रास्ता था जिससे भूखंड का उपयोग किया जा सके. हमने परियोजना से जुड़े सभी पक्षों का बकाया चुकाया जिसमें ग्रेटर नोएडा अथॉरिटी गया, बैंक, रेरा और पुराने बायर शामिल है. इसके उपरांत पूर्व प्रोमोटर की परियोजना का रेरा से पंजीयन रद्द करवाकर नई परियोजना लाई गई. हमने परियोजना के माध्यम से रोजगार उत्पन्न करने के अलावा वर्षों से रुके पड़े सरकारी राजस्व के सम्पूर्ण चक्र को भी सक्रिय कर दिया.
ये भी पढ़ें: नॉर्थ-ईस्ट में अगले एक दशक में 50 हजार करोड़ निवेश करेगा अडानी ग्रुप