AI Scam in India: भारत में साइबर अपराध का नया चेहरा अब एआई टेक्नोलॉजी बन चुका है. वॉइस क्लोनिंग, डीपफेक और ओटीपी स्कैम जैसे धोखे लोगों की मेहनत की कमाई मिनटों में साफ कर रहे हैं. मार्च में हैदराबाद की एक 72 साल की महिला ने 1.97 लाख रुपये गँवा दिए. उन्हें व्हाट्सएप पर अमेरिका में रहने वाली अपनी रिश्तेदार का मैसेज आया जिसमें तुरंत पैसों की ज़रूरत बताई गई.
जब महिला ने कॉल करके पुष्टि करनी चाही तो फोन पर आवाज़ पहचान में आई और ‘हां’ कहने पर उन्होंने तुरंत गूगल पे से पैसे भेज दिए. बाद में पता चला कि यह सब एआई वॉइस क्लोनिंग फ्रॉड था. पुलिस का मानना है कि धोखेबाज़ों ने रिश्तेदार की आवाज़ की नकल करने के लिए एआई का इस्तेमाल किया. फिलहाल साइबर क्राइम यूनिट डिजिटल सबूतों की जांच कर रही है.
पुलिस की चेतावनी
साइबर पुलिस के मुताबिक ऐसे स्कैम तेजी से बढ़ रहे हैं. उन्होंने सलाह दी है कि अचानक पैसों की मांग करने वाले मैसेज या कॉल की हमेशा वीडियो कॉल से पुष्टि करें, व्हाट्सएप पर टू-फैक्टर ऑथेंटिकेशन सक्षम करें और किसी भी संदिग्ध गतिविधि की तुरंत रिपोर्ट करें.
चौंकाने वाले आंकड़े
McAfee की रिपोर्ट के अनुसार, भारत में 83% पीड़ितों को एआई वॉइस स्कैम में आर्थिक नुकसान हुआ. लगभग 48% लोगों ने 50,000 रुपये से ज्यादा गंवाए. 69% भारतीयों को असली और एआई-जनरेटेड आवाज़ में फर्क करना मुश्किल लगता है. करीब 47% भारतीय वयस्क या तो खुद इस धोखे का शिकार हुए हैं या उनके जानकार किसी न किसी तरह इसमें फँसे हैं. यह आंकड़ा वैश्विक औसत से लगभग दोगुना है.
सबसे आम AI फ्रॉड
विशेषज्ञों ने कई तरह के एआई स्कैम बताए हैं.
वॉइस क्लोनिंग स्कैम: सोशल मीडिया से आवाज़ लेकर नकली कॉल या मैसेज भेजे जाते हैं.
ओटीपी फ्रॉड: कॉल-मर्जिंग, फिशिंग या सिम स्वैपिंग से ओटीपी चुराया जाता है.
ईमेल और डीपफेक कॉल: एआई आधारित फर्जी मेल और वीडियो कॉल से विश्वास दिलाकर पैसे ऐंठे जाते हैं.
डिजिटल अरेस्ट: नकली पुलिस या एजेंसी बनकर लोगों को डराया जाता है.
फर्जी लोन ऐप्स: कॉन्टैक्ट्स और फोटो चोरी करके ब्लैकमेल किया जाता है.
इन्वेस्टमेंट प्लेटफॉर्म धोखा: नकली ट्रेडिंग साइट्स पर निवेश दिखाकर पैसे अटका दिए जाते हैं.
रोमांस और डीपफेक स्कैम: नकली प्रोफाइल और वीडियो से लोगों को फंसाया जाता है.
डीपफेक ब्लैकमेल: तस्वीरों से फर्जी अश्लील वीडियो बनाकर वसूली की जाती है.
क्यों सफल हो रहे हैं ये स्कैम?
साइबर विशेषज्ञों के अनुसार एआई आधारित ठगी इतनी तेजी से इसलिए फैल रही है क्योंकि यह मानव मनोविज्ञान—डर, भरोसा और जल्दबाज़ी को निशाना बनाती है. धोखेबाज़ इंटरनेट से सार्वजनिक डेटा जुटाते हैं, फिर वॉइस क्लोनिंग या डीपफेक वीडियो बनाकर उन्हें ईमेल, कॉल या वीडियो कॉन्फ्रेंस में इस्तेमाल करते हैं.
सुरक्षा के उपाय
साइबर सुरक्षा विशेषज्ञों के सुझाव.
- किसी भी हालत में ओटीपी या लॉगिन डिटेल्स साझा न करें.
- संदिग्ध कॉल या मैसेज की हमेशा वीडियो कॉल से पुष्टि करें.
- किसी भी ऑफर या पेमेंट रिक्वेस्ट पर तुरंत भरोसा न करें.
- सोशल मीडिया पर अपनी व्यक्तिगत जानकारी और फोटो कम से कम साझा करें.
- टू-फैक्टर ऑथेंटिकेशन और भरोसेमंद सिक्योरिटी ऐप्स का इस्तेमाल करें.
अगर ठगी का शिकार हो जाएं तो क्या करें?
- तुरंत शिकायत दर्ज करें: cybercrime.gov.in पर या हेल्पलाइन 1930 पर कॉल करें.
- सभी सबूत (स्क्रीनशॉट, मैसेज, कॉल डिटेल्स) सुरक्षित रखें.
- किसी भी नोटिस या कॉल की पुष्टि केवल आधिकारिक पोर्टल पर करें.
- संदिग्ध लोन या इन्वेस्टमेंट ऐप्स से बचें.
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