Shipbuilding Sector: भारत हर क्षेत्र में लगातार आगे बढ़ रही है. ऐसे में जहाज बनाने में भी क्यों पीछे रहे? देश में जहाज निर्माण को बढ़ावा देने और बढ़ती मांग को पूरा करने के मकसद से सरकार शिपबिल्डिंग फाइनेंशियल असिस्टेंट पॉलिसी के दूसरे चरण की शुरुआत करने जा रही है. इसके तहत अगले छह सालों में चार ग्रीनफील्ड जहाज को बनाने और रिपेयरिंग हब के डेवलपमेंट के लिए सरकार की तरफ से 20,000 करोड़ रुपये से अधिक की सहायता की जाएगी.
इन चार जगहों की हुई है पहचान
TOI की रिपोर्ट के मुताबिक, जहाजों के निर्माण और रिपेयर हब बनाने के लिए चार लोकेशंस की पहचान की गई है- ओडिशा (पारादीप बंदरगाह के पास केंद्रपाड़ा), आंध्र प्रदेश (दुगराजपट्टनम), गुजरात (कांडला) और तमिलनाडु (तूतीकोरिन). यहां 2,000-3,000 एकड़ की जमीन में ग्रीनफील्ड जहाज बनाए जाएंगे और मरम्मत केंद्र विकसित किए जाएंगे.
बता दें कि अगले पांच सालों में कच्चे तेल, पेट्रोलियम प्रोडक्ट्स, एलपीजी, एलएनजी, ब्लैक ऑयल, बिटुमेन और अन्य उत्पादों को ले जाने के लिए लगभग 112 जहाजों (अनुमानित लागत 85,700 करोड़ रुपये) की जरूरत पड़ सकती है. इसे देखते हुए देश में शिपबिल्डिंग पर जोर दिया जा रहा है.
इन विदेशी कंपनियों से हो रही बातचीत
रिपोर्ट के मुताबिक, एक सूत्र ने कहा, घरेलू मांग को देखते हुए नए शिपबिल्डिंग हब को डेवलप करने का यही सही समय है. पेट्रोलियम एवं प्राकृतिक गैस मंत्रालय को मई में ही 10 मिडियम रेंज के टैंकर्स के लिए टेंडर निकालने का निर्देश दिया गया है.
अभी जितने शिपयार्ड हैं (आठ बड़े, सात मीडियम और 28 छोटे शिपयार्ड) उनमें अभी इस रेंज के 28 जहाज बनाने की क्षमता है. आंध्र प्रदेश की सरकार ने दुर्गाराजपट्टनम में इस प्रस्तावित प्रोजेक्ट के लिए जापान की सबसे बड़ी शिपबिल्डर इमाबारी शिपबिल्डिंग कंपनी और दो दक्षिण कोरियाई कंपनियों – एचडी केएसओई और हनवा ओशन – के साथ चर्चा की है.
इससे संबंधित अधिकारियों ने बताया कि 25,000 करोड़ रुपये का समुद्री विकास कोष बनाने का प्रस्ताव मंत्रिमंडल के समक्ष मंजूरी के लिए रखा जाएगा. यह कोष इक्विटी और ऋण प्रतिभूतियों के माध्यम से शिपिंग सेक्टर को वित्तीय सहायता प्रदान करेगा.
ये भी पढ़ें: