सुखोई जेट, T-90 टैंक, S-400 मिसाइल… रूस से अटकी इन हथियारों की डिलीवरी, भारत की बढ़ी टेंशन

सुखोई जेट, T-90 टैंक, S-400 मिसाइल… रूस से अटकी इन हथियारों की डिलीवरी, भारत की बढ़ी टेंशन


India-Russia Relations: भारत दशकों से रूस का सबसे बड़ा रक्षा उपकरण आयातक रहा है. मिसाइल, फाइटर जेट, टैंक, और राइफल जैसे कई प्रमुख हथियारों की खरीदारी ने भारतीय सशस्त्र बलों की ताकत बढ़ाई है. रूसी हथियारों ने भारत को कई युद्धों में विजय दिलाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है. लेकिन यूक्रेन युद्ध के बाद स्थिति में बड़ा बदलाव आया है.

भारत ने 2018 में 40,000 करोड़ रुपये के समझौते के तहत रूस से 5 एस-400 एयर डिफेंस सिस्टम खरीदने का अनुबंध किया था. अब तक 3 सिस्टम भारत को मिल चुके हैं और बाकी के बचे हुए 2 सिस्टम की आपूर्ति में देरी हो रही है. रूस ने हाल ही में संकेत दिया है कि ये सिस्टम भारत को 2026 तक ही मिल पाएंगे. लेकिन फिलहाल देरी देखने को मिल रही है.

कलपुर्जों की कमी बड़ी समस्या
भारत को रूस से सुखोई-30 एमकेआई फाइटर जेट और टी-90 टैंक जैसे महत्वपूर्ण हथियारों के कलपुर्जे मिलने में गंभीर समस्या का सामना करना पड़ रहा है. भारतीय सेना के मुख्य युद्धक टैंक के कलपुर्जों की कमी ने उनकी कार्यक्षमता प्रभावित की है. इसके अलावा भारतीय वायुसेना के लिए महत्वपूर्ण इन फाइटर जेट्स के स्पेयर पार्ट्स भी समय पर नहीं मिल रहे.

यूक्रेन युद्ध का असर
रूसी रक्षा उद्योग इस समय पूरी तरह से यूक्रेन युद्ध पर केंद्रित है. युद्ध में रूस के एस-400 सिस्टम और टी-90 टैंक भारी संख्या में नष्ट हुए हैं. रूस अब इनकी भरपाई और अपनी सेना की प्राथमिकता पर ध्यान दे रहा है. अमेरिकी और ब्रिटिश मिसाइलों ने यूक्रेनी सेना को ताकतवर बनाया है, जिससे रूस को भारी नुकसान उठाना पड़ा है.

भारत के लिए रणनीतिक चुनौतियां
चीन और पाकिस्तान की ओर से बढ़ती सैन्य चुनौतियों के बीच रूस से हथियारों की आपूर्ति में देरी ने भारत की तैयारियों पर असर डाला है. वहीं रूस अब सैन्य तकनीक के लिए चीन पर निर्भर हो रहा है. यह भारत के लिए एक खतरे की घंटी है. भारत ने रूस से हथियार खरीदने के कारण अमेरिका के साथ अपने संबंधों को दांव पर लगाया है. लेकिन रूस अपने वादे पूरे करने में नाकाम साबित हो रहा है.

रूस पर प्रतिबंध और रक्षा उद्योग की स्थिति
रूस पर लगे अमेरिकी प्रतिबंधों ने उसके रक्षा उद्योग को गंभीर रूप से प्रभावित किया है, जिससे सैन्य तकनीक की आपूर्ति में रुकावट आई है. इसके अलावा रूस की भरोसेमंदता पर सवाल उठने लगे हैं.

भारत की प्रतिक्रिया और आगामी योजनाएं
रूस से समय पर आपूर्ति सुनिश्चित करने के लिए भारत हर संभव प्रयास कर रहा है. इसके लिए  प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने हाल ही में रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन से इस मुद्दे को उठाया. वहीं संबंधित मामलों पर बात करने के लिए रक्षामंत्री राजनाथ सिंह अगले सप्ताह रूस के दौरे पर जा रहे हैं. जहां पर रूस से बचे हुए एस-400 सिस्टम और अन्य कलपुर्जों की आपूर्ति को लेकर बात की जाएगी.

क्या है भारत की वैकल्पिक रणनीति?
भारत पिछले एक दशक में पश्चिमी देशों से हथियारों की खरीद बढ़ा रहा है. हालांकि, अभी भी रूस का हिस्सा 36% है. स्वदेशी रक्षा उत्पादन पर जोर बढ़ाया जा रहा है, ताकि आयात पर निर्भरता कम हो.

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