Supreme Court summond Jailer: भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने अपने आदेश के बावजूद एक कैदी की रिहाई न होने के मामले को गंभीरता से लिया है. सर्वोच्च न्यायालय ने गाजियाबाद जेल के जेलर को बुधवार (25 जून) को व्यक्तिगत रूप से अदालत में पेश होने का आदेश दिया है. इसके अलावा, अदालत ने उत्तर प्रदेश के जेल महानिदेशक को भी आदेश देकर कहा है कि वह सुनवाई में वीडियो कांफ्रेंसिंग के माध्यम से उपस्थित रहें.
आखिर क्या है पूरा मामला?
आफताब नाम के एक शख्स पर नाबालिग लड़की के अपहरण करने और धर्मांतरण कराने के मामले में IPC की धारा 366 और यूपी अवैध धर्मांतरण निषेध कानून की धाराओं के तहत जनवरी 2024 में केस दर्ज हुआ था. इसके बाद 29 अप्रैल, 2025 को सुप्रीम कोर्ट ने उसकी जमानत पर रिहाई का आदेश दे दिया. अब आफताब ने दोबारा याचिका दाखिल कर कहा है कि जेलर ने उसे रिहा करने से मना कर दिया है. जेलर का कहना है कि उन्हें रिहाई का जो आदेश मिला है, उसमें कानून की उन धाराओं का पूरा उल्लेख नहीं है, जिनके तहत यह केस दर्ज है.
सुप्रीम कोर्ट में क्या हुआ?
सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस के. वी. विश्वनाथन और इन कोटिश्वर सिंह की अवकाशकालीन बेंच ने याचिकाकर्ता की बात पर हैरानी जताई. अदालत की अवकाशकालीन बेंच ने कहा कि अगर कानून की धारा का पूरा उल्लेख न होना उसकी रिहाई न होने का आधार है, तो यह बड़ी गंभीर बात है. इसके लिए संबंधित अधिकारियों पर अवमानना का मुकदमा चलाया जाएगा.
इसके अलावा सुप्रीम कोर्ट के जजों ने याचिकाकर्ता को भी झूठे दावे के प्रति आगाह किया. सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि हो सकता है रिहाई न होने का कारण कोई दूसरा मुकदमा हो, जिसमें याचिकाकर्ता की मानत अभी तक न हुई हो और अगर वास्तव में ऐसा हुआ तो इस मामले में भी उसकी मानत को रद्द कर दिया जाएगा.