Asaduddin Owaisi on JPC Report: वक्फ संशोधन बिल पर बनी संयुक्त संसदीय समिति ने गुरुवार (13 फरवरी, 2025) को अपनी रिपोर्ट लोकसभा और राज्यसभा में पेश कर दी. इस रिपोर्ट पर पिछले कई दिनों से सियासत चल रही थी कि समिति के सदस्य और सांसद असदुद्दीन ओवैसी के असहमति नोट्स के कई हिस्सों को रिपोर्ट से हटाकर 30 जनवरी को स्पीकर को सौंपा गया था. गुरुवार को इसी मुद्दे पर ओवैसी अन्य विपक्षी सांसदों के साथ लोकसभा स्पीकर ओम बिरला से मिले और अपने असहमति नोट्स (Dissent Notes) के हटाए गए हिस्सों को शामिल करने की मांग की.
असदुद्दीन ओवैसी के असहमति नोट के 19 पैराग्राफ को संयुक्त संसदीय समिति की रिपोर्ट में शामिल कर लिया गया है. बताते चलें कि 30 जनवरी को लोकसभा के स्पीकर को सौंपी गई रिपोर्ट से असदुद्दीन ओवैसी के असहमति नोट्स से 40 पैराग्राफ हटा लिए गए थे. जिसके बाद अब 40 में से 19 पैराग्राफ को शामिल कर लिया गया है लेकिन 21 पैराग्राफ को रिपोर्ट के डिसेंट नोट्स में जगह नहीं दी गई है.
‘इस्लाम अपनाने से अनुसूचित जनजाति की पहचान समाप्त नहीं होती’
ओवैसी के असहमति नोट के पैराग्राफ 1.3.5 जिसे हटाने के बाद जोड़ा गया है उसमें असदुद्दीन ओवैसी ने लिखा है कि समिति ने अनुसूचित जनजातियों और उनकी जमीनों पर खतरे को गंभीरता से लिया है और मंत्रालय को सिफारिश की है कि वह ऐसा कोई कानून बनाए जिससे जनजातीय जमीनों को वक्फ जमीन घोषित करने से रोका जा सके ताकि अनुसूचित जनजातियों और उनके क्षेत्रों की रक्षा हो सके. हालांकि, समिति ने यह नहीं माना कि अनुसूचित जनजातियों के कुछ सदस्य मुस्लिम भी हो सकते हैं. अनुसूचित जातियों के विपरीत, अगर कोई व्यक्ति इस्लाम धर्म अपना लेता है, तो उसकी अनुसूचित जनजाति की पहचान समाप्त नहीं होती. इसलिए, किसी अनुसूचित जनजाति के मुस्लिम व्यक्ति की वक्फ बनाने की आजादी भी सुरक्षित रहनी चाहिए.
इसी तरह ओवैसी के डिसेंट नोट के पैराग्राफ 1.5 को पहले हटा दिया गया था लेकिन अब फिर से जोड़ा गया है जिसमें ओवैसी ने लिखा है कि वक्फ संशोधित विधेयक वक्फ संपत्तियों के हित में नहीं लाया गया है, बल्कि यह मौजूदा सरकार की एक राजनीतिक रणनीति का हिस्सा है, जिसका उद्देश्य अल्पसंख्यकों, खासतौर पर मुस्लिमों के अधिकारों को कमजोर करना है साथ ही प्रस्तावित संशोधन संविधान के अनुच्छेद 14, 15, 25, 26 और 300A के तहत मुस्लिमों के अधिकारों का उल्लंघन करते हैं.
‘सरकार ने कोई औपचारिक चर्चा नहीं की’
ओवैसी के असहमति नोट के चैप्टर 2 बैकग्राउंड and इंट्रोडक्शन के 6 पैराग्राफ को हटाने के बाद फिर से रिपोर्ट में शामिल कर लिया गया है. इन पैराग्राफ में ओवैसी ने वक्फ संशोधन बिल पर सरकार की मंशा पर सवाल उठाए थे. डिसेंट नोट्स के पैराग्राफ 2.4 से 2.9 में ओवैसी ने लिखा कि अल्पसंख्यक मामलों के मंत्री ने लोकसभा में विधेयक पेश करते समय बार-बार दावा किया कि इसे 10 वर्षों की व्यापक चर्चा के बाद तैयार किया गया है लेकिन सार्वजनिक रिकॉर्ड से यह साबित नहीं होता. केंद्र सरकार ने इस पर कोई औपचारिक चर्चा नहीं की, न ही जनता से सुझाव मांगे गए, और न ही यह जानकारी दी गई कि 1995 के अधिनियम में संशोधन करने पर विचार किया जा रहा है.
ओवैसी ने नोट्स में लिखा कि जब संसद में पूछा गया कि क्या सरकार ऐसा कोई संशोधन लाने पर विचार कर रही है, तो सरकार ने सीधा जवाब नहीं दिया और 2023 में मीडिया में कुछ रिपोर्ट आईं, जिनमें बताया गया कि अल्पसंख्यक मामलों के मंत्रालय ने 20 राज्य वक्फ बोर्डों के सीईओ के साथ बैठक की थी साथ ही एक रिपोर्ट में यह भी बताया गया कि सरकार ‘वक्फ-बाय-यूज़र’ और ‘वक्फ-अलाल-औलाद’ जैसे दो विवादित मुद्दों पर विचार कर रही थी और 2024 की एक मीडिया रिपोर्ट में यह भी बताया गया कि 2023 में तत्कालीन मंत्री स्मृति ईरानी ने वक्फ बोर्डों के सीईओ और अध्यक्ष से मुलाकात की थी.
‘सरकारी वेबसाइट पर चर्चाओं से जुड़ा कोई आधिकारिक नोटिस जारी नहीं किया’
ओवैसी के शामिल किए गए नोट के मुताबिक हालांकि, इन रिपोर्टों में इस बात का कोई सबूत नहीं है कि वास्तव में व्यापक चर्चा हुई थी और सरकार की वेबसाइट पर इन चर्चाओं से जुड़ा कोई आधिकारिक नोटिस जारी नहीं किया गया. इसके अलावा‘इवेंट्स’ सेक्शन में भी कोई जानकारी या तस्वीर उपलब्ध नहीं थी साथ ही केंद्रीय वक्फ परिषद की वेबसाइट भी 2022 से अपडेट नहीं की गई थी और दिसंबर 2023 की ‘ईयर एंड रिव्यू’ रिपोर्ट में भी इस चर्चा का कोई उल्लेख नहीं था.
ओवैसी के मुताबिक इससे साफ है कि चर्चाएं पारदर्शी नहीं थीं, और संभवतः कुछ चुने हुए लोगों तक ही सीमित रखी गईं. इसका मतलब है कि पहले से तय नतीजे के हिसाब से परामर्श किया गया. हटाकर फिर से जोड़े गए पैराग्राफ में ओवैसी ने आखिर में लिखा कि इस असहमति रिपोर्ट का मकसद सरकार को यह याद दिलाना है कि जब वह संसद में विधेयक पेश करे, तो केवल जेपीसी रिपोर्ट ही नहीं, बल्कि इस रिपोर्ट को भी ध्यान में रखे.
ओवैसी के डिसेंट नोट के चैप्टर 4 Thematic Analysis के आठ पैराग्राफ को हटाने के बाद फिर से रिपोर्ट में शामिल कर लिया गया है. डिसेंट नोट के पैराग्राफ 4.3.2 में ओवैसी ने लिखा कि दो संगठनों को इस चर्चा में बुलाया जाना बहुत ही दुखद है यह तब और चिंताजनक हो जाता है जब ये संगठन भारत के संविधान को नहीं मानते और हिंदू राष्ट्र बनाने की मांग करते हैं, इसके अलावा, इनका आतंकवादी गतिविधियों और हत्याओं से संबंध रहा है. इससे संसद की गरिमा को ठेस पहुंची है और इस पर विस्तृत आपत्ति पहले ही समिति के अध्यक्ष को दी जा चुकी है.
‘वक्फ-अल-औलाद का अधिकार खत्म करना’
ओवैसी के फिर से शामिल किए गए डिसेंट नोट के मुताबिक, जो विशेषज्ञ और सच्चे प्रतिनिधि थे, उन्होंने इस बिल के खिलाफ राय दी और लगभग सभी का मत था कि यह बिल सही नहीं है. इसका कारण है “वक्फ” (Waqif) की परिभाषा को सिर्फ उन्हीं मुसलमानों तक सीमित करना जो कम से कम पांच साल से इस्लाम मान रहे हों. वक्फ-अल-औलाद (Waqf-al-Aulad) यानी परिवार के लिए वक्फ संपत्ति बनाने का अधिकार खत्म करना, वक्फ-बाय-यूजर (Waqf by User) यानी लंबे समय से धार्मिक उपयोग में आ रही वक्फ संपत्तियों को हटाना, सर्वे कमिश्नर की जगह कलेक्टर को नियुक्त करना, कलेक्टर को किसी भी संपत्ति को सरकारी संपत्ति घोषित करने का अधिकार देना, वक्फ संपत्तियों के लिए समय सीमा की सुरक्षा हटाना,वक्फ कानून को अन्य कानूनों पर प्राथमिकता देने का नियम हटाना,वक्फ ट्रिब्यूनल के फैसलों को अंतिम मानने का नियम हटाना और गलती से ‘Evacuee Property’ घोषित की गई वक्फ संपत्तियों की सुरक्षा खत्म करना.
ओवैसी के मुताबिक यह स्पष्ट है कि सरकार इस बिल के जरिए वक्फ संपत्तियों को हड़पने की कोशिश कर रही है. जिन संपत्तियों को तोड़ा गया या तोड़ने की योजना बनाई गई, वे मुख्य रूप से दरगाहें, कब्रिस्तान और अन्य धार्मिक स्थल हैं. इनमें से कई संपत्तियां “वक्फ-बाय-यूजर” की श्रेणी में आती हैं, यानी ये लंबे समय से धार्मिक उद्देश्य के लिए उपयोग की जा रही हैं और सरकारी रिकॉर्ड में भी दर्ज हैं. सुप्रीम कोर्ट और विभिन्न हाई कोर्ट पहले ही यह तय कर चुके हैं कि ऐसी संपत्तियां वक्फ संपत्ति मानी जाएंगी, भले ही सरकारी रिकॉर्ड में उन्हें सरकारी संपत्ति बताया गया हो लेकिन सरकार इन्हें सरकारी संपत्ति बताकर अवैध कब्जे (Encroachment) के नाम पर तोड़ने या हटा देने की योजना बना रही है और अभी तक वक्फ अधिनियम के तहत ऐसी कार्रवाई को चुनौती दी जा सकती थी, लेकिन अगर यह नया कानून लागू हो जाता है, तो ऐसा करना संभव नहीं रहेगा.
‘जनजातीय भूमि को वक्फ संपत्ति घोषित करने से रोकने के लिए कानूनी उपाय किए जाएं’
ओवैसी के मुताबिक रिपोर्ट के एक हिस्से में यह मांग की गई है कि पांचवीं और छठी अनुसूची के तहत आने वाली जनजातीय भूमि को वक्फ संपत्ति घोषित करने से रोकने के लिए कानूनी उपाय किए जाएं लेकिन रिपोर्ट में यह दिखाने के लिए कोई सबूत नहीं दिया गया कि ऐसा हो रहा है. डिसेंट नोट्स के मुताबिक संविधान के अनुसार, आदिवासी और जनजातीय समुदाय के लोग भी मुस्लिम हो सकते हैं, उनकी धार्मिक मान्यताओं के आधार पर उनकी जनजातीय पहचान खत्म नहीं होती. फिर उन्हें मस्जिद, कब्रिस्तान, स्कूल आदि बनाने से क्यों रोका जाए? 1995 का वक्फ अधिनियम और पांचवीं-छठी अनुसूची के बीच ऐसा कोई टकराव नहीं है.
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