1975 का चिरूडीह कांड, जिसमें केंद्रीय मंत्री रहते हुए शिबू सोरेन हुए अंडरग्राउंड, देना पड़ा था

1975 का चिरूडीह कांड, जिसमें केंद्रीय मंत्री रहते हुए शिबू सोरेन हुए अंडरग्राउंड, देना पड़ा था


झारखंड के पूर्व मुख्यमंत्री शिबू सोरेन का लंबी बीमारी के बाद 81 वर्ष की उम्र में निधन हो गया है. उनका राजनीतिक जीवन भी काफी उथल-पुथल भरा रहा है. जब शिबू सोरेन 2004 में केंद्र की मनमोहन सिंह सरकार में मंत्री बने थे तो उनके खिलाफ 30 साल पुराने एक मामले में गैर-जमानती वारंट जारी हुआ था, जिसके बाद उन्हें अंडरग्राउंड होना पड़ा था. वो केस था- 1975 का चिरूडीह नरसंहार.
 
2004 में हुए लोकसभा चुनाव में झारखंड मुक्ति मोर्चा कांग्रेस के नेतृत्व वाले यूपीए का हिस्सा थी. जब यूपीए की जीत हुई तो मनमोहन सिंह प्रधानमंत्री बने और उन्होंने 2004 में कोयला मंत्री के रूप में कैबिनेट में शामिल किया. हालांकि शिबू सोरेन ज्यादा दिनों तक कोयला मंत्री नहीं रह पाए. उनके शपथ लेने के कुछ ही दिनों बाद 1975 का चिरूडीह नरसंहार सामने आ गया. इस मामले में कोर्ट ने गैर जमानती वारंट किया तो वह अंडरग्राउंड हो गए और उनका कहीं पता नहीं चला. जिसके बाद तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने शिबू सोरेन से इस्तीफा मांग लिया. हालांकि जब उन्हें कोर्ट से राहत मिली तो मनमोहन सिंह ने उन्हें फिर से मंत्रिमंडल में शामिल कर लिया. 

क्या था चिरूडीह नरसंहार?

1975 में चिरूडीह दुमका जिले में हुआ करता था. चिरूडीह में नरसंहार हुआ था, जिसमें 11 लोग मारे गए थे. दरअसल शिबू सोरेन के झारखंड आंदोलन के दौरान कई हिंसक घटनाएं भी हुईं थीं, जिनमें से एक थी चिरूडीह की घटना. शिबू सोरेन का दावा था कि वो गरीबों की जमीन वापस दिलाने के लिए अभियान चला रहे थे. बताया जाता है कि एक ओर आदिवासी तीर-कमान लिए हुए थे, जबकि दूसरी ओर महाजन थे जो बंदूंक लिए हुए थे. दोनों पक्षों की बीच हिंसक झड़प हुई और चारों ओर चीख-पुकार मची. बाद में पुलिस ने किसी तरह इस हिंसा पर काबू पाया. तब तक 9 मुस्लिम समेत 11 लोग मारे जा चुके थे. इस घटना के बाद शिबू सोरेन आदिवासियों के बीच काफी लोकप्रिय हो गए. 

शिबू सोरेन ने बुलंद की आदिवासियों की आवाज

शिबू सोरेन को आदिवासियों की आवाज बुलंद करने के लिए जाना जाता है. 1970 के दशक में ‘धनकटनी आंदोलन’ जैसे कई आंदोलनों का उन्होंने नेतृत्व किया. शिबू सोरेन ने बिहार से अलग राज्य ‘झारखंड’ बनाने के आंदोलन में भी महत्वूर्ण भूमिका निभाई. वो तीन बार (2005, 2008, 2009) झारखंड के मुख्यमंत्री बने, लेकिन एक बार भी अपना कार्यकाल पूरा नहीं कर पाए. 

शिबू सोरेन ने पहली बार 1977 में लोकसभा का चुनाव लड़ा था, लेकिन हार का सामना करना पड़ा था. उसके बाद हुए 1980 के लोकसभा चुनाव में उन्हें सफलता मिली. इसके बाद 1986, 1989, 1991, 1996 में भी वो चुनाव जीते थे. 2004 में वे दुमका से लोकसभा के लिए चुने गए थे.  



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