‘6 मिनट लेट पहुंची, नहीं देने दिया गया एग्जाम’, हाई कोर्ट पहुंची लड़की से जज ने क्या कहा?

‘6 मिनट लेट पहुंची, नहीं देने दिया गया एग्जाम’, हाई कोर्ट पहुंची लड़की से जज ने क्या कहा?


Delhi High Court News: दिल्ली हाई कोर्ट ने परीक्षा की ‘शुचिता और अनुशासन’ को रेखांकित करते हुए ‘समान विश्वविद्यालय प्रवेश परीक्षा’ (CUET) में छह मिनट की देरी से शामिल होने वाली स्टूडेंट को राहत देने से इनकार कर दिया. 18 साल की स्टूडेंट ने दावा किया कि 13 मई को वह परीक्षा के निर्धारित समय से छह मिनट बाद सुबह करीब 8.36 बजे परीक्षा केंद्र पहुंची थी, लेकिन उसे प्रवेश नहीं दिया गया.

सुबह 8.30 बजे के आसपास गेट बंद हुए

जस्टिस प्रतिभा एम सिंह और जस्टिस रजनीश कुमार गुप्ता की पीठ मामले में हस्तक्षेप करने से इनकार करने वाले एकल जज के आदेश के खिलाफ स्टूडेंट की याचिका पर सुनवाई कर रही थी. पीठ ने पाया कि राष्ट्रीय परीक्षा प्राधिकरण के सूचना बुलेटिन और प्रवेश पत्र में परीक्षा शुरू होने से दो घंटे पहले सुबह करीब 7 बजे केंद्र पर पहुंचने के बारे में बहुत स्पष्ट निर्देश दिए गए थे और बताया गया था कि सुबह 8.30 बजे के आसपास गेट बंद हो जाएंगे. पीठ ने कहा कि इतनी बड़ी परीक्षा के संचालन में लापरवाही से अव्यवस्था पैदा होगी और ‘परीक्षा का अनुशासन बनाए रखा जाना चाहिए’.

कोर्ट ने 31 मई को कहा, ‘‘सीयूईटी एक महत्वपूर्ण प्रवेश परीक्षा है और परीक्षा हॉल में समय पर पहुंचना, समय पर सीट पर पहुंचना और गेट बंद होने के समय से पहले केंद्र में होना, ये सभी परीक्षा प्रणाली के अनुशासन और लोकाचार का हिस्सा हैं, जिनमें ढील नहीं दी जानी चाहिए. क्योंकि इससे समान स्थिति वाले छात्रों के बीच भारी असमानता पैदा हो सकती है.’’

स्टूडेंट की अपील खारिज की

पीठ ने स्टूडेंट की अपील खारिज कर दी और कहा, ‘‘किसी को लग सकता है कि यह केवल छह मिनट का मामला था, लेकिन गेट बंद होने के समय के नियम को सख्ती से लागू करने के लिए अधिकारियों को दोषी नहीं ठहराया जा सकता.’’

अदालत ने कहा, ‘‘सीयूईटी यूजी परीक्षा एक ऐसी परीक्षा है जिसमें देश भर से 13.54 लाख से ज्यादा छात्र शामिल होते हैं. अगर अपवाद रखे जाते हैं, और ऐसी परीक्षा में अनुशासन का पालन नहीं किया जाता है, तो परीक्षा का समय पर संचालन, परिणामों की समय पर घोषणा और कॉलेजों और विश्वविद्यालयों में समय पर प्रवेश सभी खतरे में पड़ सकते हैं और इसका व्यापक प्रभाव पड़ेगा. ऐसे मामलों में, कोर्ट का हस्तक्षेप कम से कम होना चाहिए.’’

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