ज्यादातर देशों में सरकारी नौकरी को स्थिर और सुरक्षित माना जाता है. लेकिन कर्मचारियों की सैलरी तय करने का तरीका अलग-अलग हो सकता है. ऐसा ही भारत और पाकिस्तान के साथ भी है, दोनों जगह बिल्कुल अलग है. भारत में जहां वेतन आयोग (Pay Commission) लागू होता है, वहीं पाकिस्तान में NPS (National Pay Scale) सिस्टम चलता है.
भारत का वेतन आयोग कैसे करता है काम?
भारत में हर 10 साल में एक नया वेतन आयोग बनाया जाता है. इसका मकसद होता है कर्मचारियों की सैलरी, भत्ते और पेंशन को समय और महंगाई के हिसाब से बढ़ाना. अभी देश में 7वां वेतन आयोग लागू है, जिसे 2016 में लागू किया गया था. अब 8वां वेतन आयोग आने वाला है, जिसके लागू होने पर कर्मचारियों की सैलरी में 20% से 35% तक की बढ़ोतरी होने की उम्मीद है.
खास बात यह है कि भारत में जब भी नया वेतन आयोग लागू होता है तो वह पूरे देश पर एकसमान तरीके से लागू होता है. इसमें कर्मचारी यूनियनों और विशेषज्ञों की राय भी ली जाती है, ताकि फैसले पारदर्शी हों और हर वर्ग का ध्यान रखा जा सके.
पाकिस्तान का NPS सिस्टम क्या है?
पाकिस्तान में भारत की तरह कोई आयोग नहीं बनाया जाता. वहां कर्मचारियों की सैलरी और भत्तों का निर्धारण NPS (National Pay Scale) सिस्टम के जरिए किया जाता है.
इस सिस्टम में कर्मचारियों को ग्रेड 1 से ग्रेड 22 तक बांटा गया है. हर ग्रेड के हिसाब से बेसिक वेतन और भत्ते तय होते हैं. लेकिन पाकिस्तान में वेतन वृद्धि का फैसला आमतौर पर हर साल या बजट के समय लिया जाता है. यानी वहां की सरकार अपनी वित्तीय स्थिति देखकर वेतन बढ़ाने का ऐलान करती है.
दोनों देशों के सिस्टम में क्या फर्क है?
भारत और पाकिस्तान के इन दोनों सिस्टम्स में कई समानताएं हैं, लेकिन कुछ अहम अंतर भी हैं. भारत की बात करें तो वेतन आयोग हर 10 साल में पूरे देश के लिए एक समान स्ट्रक्चर तय करता है. पाकिस्तान में हर प्रांत अपनी आर्थिक स्थिति के हिसाब से NPS ग्रेड और भत्तों में बदलाव कर सकता है.
भारत में आयोग की रिपोर्ट सार्वजनिक होती है और कर्मचारी संगठनों को भी इसमें शामिल किया जाता है. पाकिस्तान में फैसले सीधे सरकार लेती है, जिससे पारदर्शिता की कमी मानी जाती है. भारत में यूनियनों की राय अहम होती है, जबकि पाकिस्तान में उनकी भूमिका सीमित है
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