नए शैक्षणिक सत्र की शुरुआत के साथ ही एक बार फिर प्राइवेट स्कूलों की फीस बढ़ोतरी को लेकर देशभर के पेरेंट्स में नाराजगी दिखने लगी है. कहीं अभिभावकों ने प्रदर्शन किया तो कहीं मंत्री और प्रशासनिक अधिकारियों से गुहार लगाई गई. हर साल यह दृश्य दोहराया जाता है, लेकिन सवाल अब भी वही है क्या प्राइवेट स्कूल अपनी मर्जी से फीस बढ़ा सकते हैं या इसके लिए उन्हें किसी से अनुमति लेनी पड़ती है?
असल में प्राइवेट स्कूलों को अपनी ऑपरेशनल लागत, स्टाफ की सैलरी, इंफ्रास्ट्रक्चर डेवलपमेंट और क्वालिटी एजुकेशन के लिए फीस बढ़ाने का अधिकार तो है, लेकिन ये अधिकार पूरी तरह से अनियंत्रित नहीं हैं. हर राज्य में फीस बढ़ोतरी के लिए अलग-अलग नियम लागू हैं, जिनका उद्देश्य अभिभावकों को अनावश्यक आर्थिक बोझ से बचाना है.
यूपी-बिहार में इससे ज्यादा नहीं बढ़ा सकते हैं फीस
मीडिया रिपोर्ट्स की मानें दिल्ली, यूपी, बिहार और हरियाणा जैसे राज्यों में फीस रेगुलेशन को लेकर स्पष्ट दिशानिर्देश हैं. उत्तर प्रदेश में स्कूल सालाना 9.9% से ज्यादा फीस नहीं बढ़ा सकते, जिसमें 5% सीधी बढ़ोतरी और शेष CPI के आधार पर होती है. वहीं बिहार में यह सीमा सिर्फ 7% तक तय है. पटना हाईकोर्ट ने भी इस नियम को संवैधानिक मान्यता दी है.
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दिल्ली की स्थिति
दिल्ली में स्थित 1677 प्राइवेट स्कूलों में से केवल 335 को ही फीस बढ़ाने से पहले शिक्षा निदेशालय (DoE) से अनुमति लेनी होती है, यानी 80% स्कूल बिना किसी निगरानी के फीस बढ़ा सकते हैं. DSEAR, 1973 के तहत सरकारी जमीन पर बने स्कूलों के लिए यह अनुमति जरूरी है.
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हरियाणा में नियम
हरियाणा में भी नियम साफ है. महंगाई दर से अधिकतम 5% अतिरिक्त फीस ही बढ़ाई जा सकती है. यानी अगर CPI 3% है, तो स्कूल 8% से अधिक नहीं बढ़ा सकते. अभिभावकों के पास भी अधिकार हैं. PTA यानी पेरेंट-टीचर असोसिएशन के माध्यम से वे स्कूल से जवाब मांग सकते हैं, विरोध दर्ज करा सकते हैं और जरूरत पड़े तो कानूनी सहारा भी ले सकते हैं.
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