<p style="text-align: justify;">तमिलनाडु को राष्ट्रीय शिक्षा नीति लागू करने का आदेश देने से सुप्रीम कोर्ट ने मना कर दिया है. कोर्ट ने कहा कि वह इस तरह का आदेश नहीं दे सकता. अगर इस नीति को लागू करने या न करने से भविष्य में किसी के मौलिक अधिकारों का हनन होता हो तो कोर्ट जरूर दखल देगा.</p>
<p style="text-align: justify;">जी एस मणि नाम के वकील की याचिका में कहा गया था कि तमिलनाडु, केरल और पश्चिम बंगाल सरकारों ने शिक्षा में 3 भाषा फार्मूले का विरोध करते हुए नेशनल एजुकेशन पॉलिसी को लागू करने से मना किया है. याचिका में मांग की गई थी कि सुप्रीम कोर्ट इन राज्यों को भाषाई राजनीति छोड़ कर छात्रों के हित में फैसला करने का निर्देश दें.</p>
<p style="text-align: justify;">शुक्रवार, 9 मई को मामला जस्टिस जे बी पारडीवाला और जस्टिस आर महादेवन की बेंच में सुनवाई के लिए लगा. याचिकाकर्ता अपने मुकदमे की पैरवी के लिए खुद पेश हुए. जस्टिस पारडीवाला ने जी एस मणि से पूछा, ‘आप नेशनल एजुकेशन पॉलिसी को लेकर क्यों चिंतित हैं?’ मणि ने जवाब दिया कि वह मूल रूप से तमिलनाडु के हैं. अब दिल्ली में रहते हैं. तमिलनाडु की भाषाई राजनीति के चलते हिंदी सीख नहीं पाए. अभी भी वही सब कुछ तमिलनाडु में चल रहा है.</p>
<p style="text-align: justify;">इस पर जस्टिस पारडीवाला ने कहा, ‘अब आप दिल्ली में हैं तो हिंदी सीख लीजिए. किसी राज्य को शिक्षा नीति को लागू करने का आदेश इस तरह की याचिका के आधार पर नहीं दिया जा सकता.’ कोर्ट ने साफ किया कि इस मामले से जुड़े जो भी कानूनी प्रश्न हैं, उन पर विचार करने से उसने मना नहीं किया है. भविष्य में किसी उचित याचिका को सुनते हुए उन प्रश्नों पर विचार हो सकता है.</p>
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सुप्रीम कोर्ट ने तमिलनाडु को राष्ट्रीय शिक्षा नीति लागू करने का आदेश देने से मना किया
