<p style="text-align: justify;">गंगा किनारे बसी काशी सिर्फ मंदिरों और घाटों के लिए नहीं, बल्कि अपने खास खानपान के लिए भी जानी जाती है. यहां के सकौड़े का स्वाद ऐसा है कि एक बार जिसने खा लिया, वह बार-बार इसी स्वाद को चखने लौट आता है. यही वजह है कि लंका इलाके में स्थित एक सकौड़े की दुकान न सिर्फ देशभर के लोगों के बीच मशहूर है, बल्कि विदेशी पर्यटक भी इसके दीवाने हैं.</p>
<p style="text-align: justify;">इस दुकान की खासियत सिर्फ इसका स्वाद नहीं, बल्कि इसके पीछे की कहानी भी है. इस दुकान को चला रहे हैं सूरज, जिन्होंने इंजीनियरिंग की पढ़ाई पूरी कर एक अच्छी नौकरी भी पाई थी. लेकिन, पारिवारिक विरासत और बनारसी स्वाद के प्रति उनका लगाव इतना गहरा था कि उन्होंने अपनी इंजीनियर की नौकरी छोड़ दी और पिता की इस पारंपरिक दुकान को संभाल लिया.</p>
<p style="text-align: justify;"><strong>सकौड़ा ही बना पहचान</strong></p>
<p style="text-align: justify;">लंका इलाके में सूरज की यह दुकान पिछले करीब 12 सालों से चल रही है. सूरज बताते हैं कि उनके पिता ने यह दुकान कई साल पहले शुरू की थी. पहले यह दुकान एक ठेले से शुरू हुई थी, लेकिन धीरे-धीरे इसकी लोकप्रियता इतनी बढ़ी कि अब यहां भीड़ लगती है. सूरज ने बताया कि उन्होंने बचपन से अपने पिताजी के साथ सकौड़ा बनाना सीखा और अब यही उनका पेशा और पहचान बन गया है.</p>
<p style="text-align: justify;">यहां बिकने वाला सकौड़ा खास तरह की उड़द दाल से बनाया जाता है, जो स्वाद में बेहद कुरकुरा और अंदर से नरम होता है. ऊपर से उस पर पड़ने वाली चटपटी चटनी और मसालों का तड़का इसे और भी लाजवाब बना देता है.</p>
<p style="text-align: justify;"><strong>मिट्टी के कुल्हड़ में मिलता है सकौड़े का स्वाद</strong></p>
<p style="text-align: justify;">सूरज की दुकान पर सकौड़ा मिट्टी के कुल्हड़ में परोसा जाता है. इसका स्वाद और भी खास इसलिए हो जाता है क्योंकि यह पारंपरिक शैली को जीवित रखता है. ग्राहकों को कुल्हड़ में मिलने वाला सकौड़ा इतना पसंद आता है कि वे कई बार दोबारा खाने आते हैं. विदेशी पर्यटक भी इस अनोखे अनुभव को कैमरे में कैद करना नहीं भूलते.</p>
<p style="text-align: justify;"><strong>स्वाद में आत्मनिर्भरता की मिसाल</strong></p>
<p style="text-align: justify;">सूरज की यह कहानी आज के युवाओं के लिए मिसाल है. जहां एक तरफ युवा सिर्फ कॉर्पोरेट जॉब की दौड़ में लगे हैं, वहीं सूरज जैसे युवा पारंपरिक व्यवसाय को अपनाकर आत्मनिर्भरता की एक नई मिसाल पेश कर रहे हैं. वह न सिर्फ अपने परिवार की विरासत को आगे बढ़ा रहे हैं, बल्कि बनारस के पारंपरिक स्वाद को देश-विदेश तक पहुंचा रहे हैं.</p>
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इंजीनियर की नौकरी छोड़ी, संभाल ली सकौड़े की दुकान; बनारस के इस स्वाद के दीवाने हैं विदेशी सैलान
