Kerala Man Return From Bahrain: 74 वर्षीय गोपालन चंद्रन की कहानी केवल एक व्यक्ति के संघर्ष की नहीं, बल्कि उन हजारों-लाखों भारतीय प्रवासियों की भी है, जो बेहतर भविष्य की तलाश में घर छोड़ते हैं, लेकिन कभी वापस नहीं लौट पाते हैं. केरल के त्रिवेंद्रम के पोवडीकोनम गांव के रहने वाले गोपालन चंद्रन 16 अगस्त 1983 को मुस्लिम बहुल मुल्क बहरीन पहुंचे थे. उनका मकसद था एक अच्छी नौकरी पाकर अपने परिवार का भविष्य संवारना, लेकिन कुछ ही समय में उनकी जिंदगी पूरी तरह बदल गई.
गोपालन चंद्रन को बहरीन लाने वाले व्यक्ति की अचानक मौत हो गई और उस दौरान उनका पासपोर्ट भी खो गया. दस्तावेजों के बिना एक अनजान देश में रहना किसी सज़ा से कम नहीं था. गोपालन न तो भारत लौट सकते थे न ही कोई औपचारिक नौकरी कर सकते थे.
Thank you @IndianDiplomacy @DrSJaishankar @Kirtivardhan_S @meaindia1
After 42 years, Indian expat Gopalan Chandran reunites with his family in Kerala!
Thanks to the tireless efforts of HE Shri.Vinod K Jacob & officials @IndiainBahrain & Bahrain authorities,and @pravasilegalcel pic.twitter.com/27fYv2IMtn
— Sudheer Thirunilath (@Sthirunilath) April 22, 2025
पीएलसी ने दिलाई गोपालन को आजादी
कई सालों तक गुमनाम आदमी की तरह जिंदगी जीने वाले गोपालन की कहानी को प्रवासी लीगल सेल (PLC) नामक एक गैर-सरकारी संगठन ने सुना. इस संगठन में रिटायर जज, वकील और पत्रकार शामिल हैं, जो विदेशों में फंसे भारतीयों की कानूनी सहायता के लिए काम करते हैं. बहरीन में PLC के अध्यक्ष सुधीर थिरुनीलथ ने अपनी टीम के साथ मिलकर भारतीय दूतावास और बहरीन के आव्रजन विभाग से संपर्क किया और सभी कानूनी अड़चनों को दूर कर गोपालन के लिए घर वापसी का रास्ता साफ किया. यह प्रक्रिया आसान नहीं थी. एक ऐसा व्यक्ति जिसके पास न पहचान थी, न कोई कानूनी दस्तावेज़, उसके लिए वीज़ा, यात्रा अनुमति और अन्य औपचारिकताएं पूरी करना काफी कठिन थीं.
बिना सामान, केवल यादें लेकर लौटे गोपालन
गोपालन बहरीन से अपने गांव के लिए रवाना हो चुके हैं. हालांकि, जाने के समय उनके पास कोई सामान नहीं था. उनके पास केवल यादें, आंसू और वह सपना जिसे उन्होंने 40 सालों तक जिया था. वह अब अपनी 95 वर्षीय मां से मिलेंगे, जिसने अपने बेटे के लौटने की उम्मीद कभी नहीं छोड़ी थी. पीएलसी ने अपनी फेसबुक पोस्ट में लिखा, “यह सिर्फ एक आदमी के घर लौटने की कहानी नहीं है. यह उस वक्त की कहानी है जब मानवता, न्याय और दया एक साथ आती है. यह उन अनगिनत प्रवासियों के लिए आशा का प्रतीक है जिसकी कोई सुनवाई नहीं होती है.”