सोने को यूं ही ‘सोता हुआ दैत्य’ नहीं कहा जाता. इतिहास गवाह है कि कई सालों तक सोना एक दायरे में ठहरा रहता है और फिर अचानक तेज़ी से दौड़ लगाता है. अक्टूबर 2011 से अक्टूबर 2022 तक सोने की कीमतें लगभग 1,700 डॉलर प्रति औंस के आसपास बनी रहीं. लेकिन नवंबर 2022 से हालात बदल गए.
सोना एक दम से भागा और इस महीने 3,500 डॉलर प्रति औंस तक पहुंच गया. ये अब तक का सबसे महंगा भाव है. हालांकि, बाद में इसमें थोड़ी गिरावट भी देखी गई. बड़ी बात ये है कि सोने के सस्ते और महंगे होने, दोनों के पीछें कहीं ना कहीं डोनाल्ड ट्रंप और उनके फैसले एक बड़ी वजह हैं.
पहले भी बढ़े थे सोने के दाम
वैसे, इससे पहले भी अक्टूबर 2018 से अगस्त 2020 के बीच ऐसा ही धमाका हुआ था, जब सोना 1,130 डॉलर प्रति औंस से चढ़कर 1,984 डॉलर प्रति औंस पर पहुंच गया था, यानी करीब 75 फीसदी की बढ़त सिर्फ दो साल में. इस बार की तेजी 2023 में शुरू हुई, जब सोने ने 13 फीसदी की छलांग लगाई और 2024 में भी कहानी दोहराई गई, इस बार 27 फीसदी की बढ़त के साथ.
ट्रंप की वजह से बढ़े सोने के दाम
अब आप सोच रहे हैं कि अचानक से सोने में इतनी तेजी कैसे आई, तो आपको बता दें, इसके पीछे कई वजहें हैं, जिनमें से एक सबसे बड़ी वजह रही है, ट्रंप के नए टैरिफ्स. 2025 में ट्रंप के टैरिफ ऐलान ने माहौल को और गरमा दिया. ट्रंप ने सभी देशों पर ‘रेसिप्रोकल टैरिफ’ लगाने का ऐलान किया, जिससे वैश्विक व्यापार पर भारी दबाव बनने का डर फैल गया. व्यापार युद्ध और आर्थिक अनिश्चितताओं ने सोने को सपोर्ट दिया और इस साल अब तक सोना 25 फीसदी उछल चुका है.
लेकिन हर रफ्तार को कहीं न कहीं ब्रेक भी लगता है. ऐसा ही सोने के साथ भी हुआ. सोना 22 अप्रैल को 3,500 डॉलर तक पहुंचा और फिर अचानक 200 डॉलर गिरकर अब करीब 3,300 डॉलर प्रति औंस पर आ गया है. भारत में भी सोने ने 22 अप्रैल को 24 कैरेट के 10 ग्राम के लिए 1 लाख का आंकड़ा छू लिया था, जो अब 95,320 तक आ चुका है.
सोने पर ब्रेक कैसे लगा?
ये सवाल बड़ा है कि अगर ट्रंप की टैरिफ नीतियों की वजह से सोना अपने ऑल टाइम हाई पर पहुंचा तो फिर ट्रंप की ही वजह से उसकी कीमतों में गिरावट कैसे आई? दरअसलस इसके पीछे कई कारण हैं. जैसे- ट्रंप ने अचानक चीन पर सख्ती से पीछे हटने की बात कही. चीन भी व्यापार युद्ध को कम करने के कदम उठा रहा है. इससे निवेशकों को लगा कि शायद हालात अब और नहीं बिगड़ेंगे और सोने की चमक थोड़ी फीकी पड़ गई.
इसके अलावा ट्रंप ने फेडरल रिजर्व के चेयरमैन पॉवेल पर दबाव बनाना भी कम कर दिया, जिससे ब्याज दरों को लेकर अनिश्चितता थोड़ी कम हुई. अमेरिकी महंगाई दर भी नीचे जा रही है और फेडरल रिजर्व फूंक-फूंक कर कदम रख रहा है. जब महंगाई और ब्याज दरें स्थिर होती हैं, तो सोने की चमक थोड़ी कम हो जाती है.
डॉलर की मजबूती और सस्ता हुआ सोना
डॉलर की ताकत और सोने के कीमतों का रिश्ता भी बड़ा दिलचस्प है. अभी डॉलर इंडेक्स तीन साल में पहली बार 100 से नीचे है, जिसने सोने को सपोर्ट दिया था. लेकिन अगर व्यापार तनाव और कम होता है और डॉलर मजबूत होता है, तो सोने की मांग कमजोर हो सकती है. साथ ही अमेरिका के ट्रेजरी यील्ड्स, खासकर 10-ईयर यील्ड भी बढ़ रही हैं, जो सोने के लिए खतरे की घंटी हैं.
अभी भी कुछ कहा नहीं जा सकता
आर्थिक हालात अगर और सुधरते हैं, तो निवेशक इक्विटी जैसे जोखिम भरे लेकिन ज्यादा रिटर्न देने वाले साधनों की तरफ बढ़ सकते हैं. इससे सोने की सेफ हेवन डिमांड में गिरावट आ सकती है. लेकिन कहानी यहीं खत्म नहीं होती. ट्रंप के फैसले पल में बदल सकते हैं, महंगाई दर फिर से चढ़ सकती है, या फिर कोई नया भू-राजनीतिक संकट पैदा हो सकता है. अगर ऐसा हुआ तो सोने की कीमत फिर आसमान छू सकती है.
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